आद॑स्य शु॒ष्मिणो॒ रसे॒ विश्वे॑ दे॒वा अ॑मत्सत । यदी॒ गोभि॑र्वसा॒यते॑ ॥
English Transliteration
ād asya śuṣmiṇo rase viśve devā amatsata | yadī gobhir vasāyate ||
Pad Path
आत् । अ॒स्य॒ । शु॒ष्मिणः॑ । रसे॑ । विश्वे॑ । दे॒वाः । अ॒म॒त्स॒त॒ । यदि॑ । गोभिः॑ । व॒सा॒यते॑ ॥ ९.१४.३
Rigveda » Mandal:9» Sukta:14» Mantra:3
| Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:3» Mantra:3
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:3
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (यदि) अगर ((विश्वेदेवाः) सम्पूर्ण विद्वान् (अस्य) पूर्वोक्त (शुष्मिणः) बलसम्पन्न परमात्मा को (गोभिः वसायते) इन्द्रियगोचर कर सकें (आत्) तदनन्तर वे सब देव (अमत्सत) उस को ध्यान का विषय बनाकर आनन्दित होते हैं।
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम्हारे इन्द्रिय तुमको स्वभाव से बहिमुर्ख बनाते हैं। तुम यदि संयमी बन कर उनका संयम करो, तो इन्द्रिय परमात्मा के स्वरूप को विषय करके तुम्हें आनन्दित करेंगे। इसी अभिप्राय से उपनिषद् में कहा है कि “कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैक्षत्” क० ४।१। कोई धीर पुरुष ही प्रत्यगात्मा को देख सकता है। यहाँ देखने के अर्थ व इन्द्रियगोचर करने के अर्थ मूर्तिमान् पदार्थ के समान देखने के नहीं, किन्तु जिस प्रकार निराकार और निरूप होने पर भी सुखु-दुःखादिकों का अनुभव होता है, इस प्रकार अनुभव का विषय बनाने का नाम यहाँ देखना व इन्द्रियगोचर करना है। इसी अभिप्राय से “दृश्यते त्वग्र्या बुद्ध्या सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभिः” कि वह सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा देखा जा सकता है, कहा है। सूक्ष्म बुद्धि से तात्पर्य यहाँ योगज सामर्थ्य का है अर्थात् चित्तवृत्तिनिरोध द्वारा परमात्मा का अनुभव हो सकता है। इसी अभिप्राय से कहा है कि “तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्” उस समय द्रष्टा के स्वरूप में स्थिति हो जाती है। इसी अभिप्राय से कहा है कि “यदि गोभिर्वसायते” ॥३॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (यदि) चेद् (विश्वेदेवाः) सम्पूर्णविद्वांसः (अस्य) इमम्पूर्वोक्तं (शुष्मिणः) बलिनम्परमात्मानं (गोभिः वसायते) इन्द्रियगोचरं कुर्युः (आत्) तदा पुनः ते सर्वे (अमत्सत) ध्यानविषयं तं कृत्वा नन्दन्ति ॥३॥