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सोम॑: पुना॒नो अ॑र्षति स॒हस्र॑धारो॒ अत्य॑विः । वा॒योरिन्द्र॑स्य निष्कृ॒तम् ॥

English Transliteration

somaḥ punāno arṣati sahasradhāro atyaviḥ | vāyor indrasya niṣkṛtam ||

Pad Path

सोमः॑ । पु॒ना॒नः । अ॒र्ष॒ति॒ । स॒हस्र॑ऽधारः । अति॑ऽअविः । वा॒योः । इन्द्र॑स्य । निः॒ऽकृ॒तम् ॥ ९.१३.१

Rigveda » Mandal:9» Sukta:13» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब परमात्मा की यज्ञादिकर्मप्रियता और दानप्रियता को कहते हैं।

Word-Meaning: - (सोमः) ‘सुते चराचरं जगदिति सोमः’ सब चराचर जगत् को उत्पन्न करनेवाला वह परमात्मा (पुनानः अर्षति) सबको पवित्र करता हुआ सब जगह व्याप्त हो रहा है और (सहस्रधारः) सहस्त्रों वस्तुओं को धारण करनेवाला है (अत्यविः) अत्यन्त रक्षक है और (वायोः) कर्मशील तथा (इन्द्रस्य) ज्ञानशील विद्वानों का (निष्कृतम्) उद्धार करनेवाला है ॥१॥
Connotation: - यद्यपि परमात्मा सर्वरक्षक है, वह किसी को द्वेषदृष्टि से नहीं देखता, तथापि वह सत्कर्मी पुरुषों को शुभ फल देता है और असत्कर्मियों को अशुभ, इसी अभिप्राय से उस को कर्मशील पुरुषों का प्यारा वर्णन किया है ॥१॥
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ARYAMUNI

अधुना परमात्मनः यज्ञादिकर्मप्रियता दानप्रियता च वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (सोमः) चराचरजगदुत्पादकः परमात्मा (पुनानः अर्षति) सर्वं पावयन् सर्वत्र व्याप्नोति तथा च (सहस्रधारः) सहस्राणि वस्तूनि धारयति (अत्यविः) अत्यन्तरक्षकोऽस्ति (वायोः) कर्मशीलस्य (इन्द्रस्य) ज्ञानशीलस्य च विदुषः (निष्कृतम्) उद्धारकोऽस्ति ॥१॥