यः सोम॑: क॒लशे॒ष्वाँ अ॒न्तः प॒वित्र॒ आहि॑तः । तमिन्दु॒: परि॑ षस्वजे ॥
English Transliteration
yaḥ somaḥ kalaśeṣv ām̐ antaḥ pavitra āhitaḥ | tam induḥ pari ṣasvaje ||
Pad Path
यः । सोमः॑ । क॒लशे॑षु । आ । अ॒न्तरिति॑ । प॒वित्रे॑ । आऽहि॑तः । तम् । इन्दुः॑ । परि॑ । स॒स्व॒जे॒ ॥ ९.१२.५
Rigveda » Mandal:9» Sukta:12» Mantra:5
| Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:38» Mantra:5
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:5
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (यः) जो परमात्मा (कलशेषु) कलं शवातीति कलशो वैदिकशब्दः’ वैदिक शब्दों में (आ) वर्णन किया गया है (पवित्रे अन्तः) और सब पवित्र वस्तुओं में (आहितः) स्थिर है और (सोमः) सौम्यस्वभाववाला है (तम् इन्दुः) उसको विद्वान् लोग (परिषस्वजे) लाभ करते हैं ॥५॥
Connotation: - विद्वान् लोग परमात्मा की अभिव्यक्ति अर्थात् आविर्भाव को सब पवित्र वस्तुओं में उपलब्ध करते हैं। तात्पर्य ये है कि जो-जो विभूतिवाली वस्तु है, उसमें वे परमात्मा के तेज को अनुभव करते हैं। मालूम होता है कि ‘यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्’। कि जो विभूतिवाली वस्तु अथवा शोभावाली वा यों कहो कि बलवाली है, वह सब परमात्मा के तेज से ही उत्पन्न हुई है। मालूम होता है गीता का यह भाव भी पूर्वोक्त मन्त्रों से ही लिखा गया है ॥५॥३८॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (यः) यः परमात्मा (कलशेषु) वैदिकशब्देषु (आ) वर्णितः (पवित्रे अन्तः) सर्वपवित्रवस्तुषु (आहितः) स्थिरोऽस्ति (सोमः) सौम्यस्वभाववांश्च (तम् इन्दुः) तमीश्वरं विद्वांसः (परिषस्वजे) लभन्ते ॥५॥