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दि॒वो नाभा॑ विचक्ष॒णोऽव्यो॒ वारे॑ महीयते । सोमो॒ यः सु॒क्रतु॑: क॒विः ॥

English Transliteration

divo nābhā vicakṣaṇo vyo vāre mahīyate | somo yaḥ sukratuḥ kaviḥ ||

Pad Path

दि॒वः । नाभा॑ । वि॒ऽच॒क्ष॒णः । अव्यः॑ । वारे॑ । म॒ही॒य॒ते॒ । सोमः॑ । यः । सु॒ऽक्रतुः॑ । क॒विः ॥ ९.१२.४

Rigveda » Mandal:9» Sukta:12» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:38» Mantra:4 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:4


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) जो परमात्मा (दिवः नाभा) द्युलोक का नाभि है (विचक्षणः) सर्वज्ञ है (अव्यः) सब का भजनीय है (वारे महीयते) जो सब श्रेष्ठों में श्रेष्ठतम है (सोमः) सौम्यस्वभाववाला है (सुक्रतुः) सत्कर्मी है और (कविः) क्रान्तकर्मा है ॥४॥
Connotation: - जिस प्रकार ‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’ तै २।१ सत्य ज्ञान और अनन्तादि गुणोंवाला ब्रह्म है, यह वाक्य सिद्धवस्तु को बोधन करता है, इसी प्रकार उक्त मन्त्र भी सिद्ध वस्तु का बोधक है और जो इस में महीयते कहा गया है, ये भी सिद्धवस्तु का बोधक है, परन्तु इस से ये शङ्का कदापि नहीं होनी चाहिये कि इस में कर्तव्य का उपदेश नहीं, क्योंकि जब महीयते कह दिया तो अर्थ ये निकले कि वह पूजा जाता है। पूजा एक प्रकार का कर्म है, उसी को कर्तव्य कहते हैं। तात्पर्य ये निकला कि परमात्मा ने इस मन्त्र में उपदेश किया है कि तुम लोग उक्तगुणसम्पन्न परमात्मा का पूजन करो अर्थात् सन्ध्यावन्दनादि कर्मों से उसे वन्दनीय समझो ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) यः परमात्मा (दिवः नाभा) द्युलोकस्य नाभिरस्ति (विचक्षणः) सर्वज्ञोऽस्ति (अव्यः) सर्वेषां भजनीयः (वारे महीयते) सर्वेषां श्रेष्ठानां श्रेष्ठतमश्च (सोमः) सौम्यस्वभाववांश्चास्ति (सुक्रतुः) सत्कर्मा (कविः) क्रान्तकर्मा चास्ति ॥४॥