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ऋषे॑ मन्त्र॒कृतां॒ स्तोमै॒: कश्य॑पोद्व॒र्धय॒न्गिर॑: । सोमं॑ नमस्य॒ राजा॑नं॒ यो ज॒ज्ञे वी॒रुधां॒ पति॒रिन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥

English Transliteration

ṛṣe mantrakṛtāṁ stomaiḥ kaśyapodvardhayan giraḥ | somaṁ namasya rājānaṁ yo jajñe vīrudhām patir indrāyendo pari srava ||

Pad Path

ऋषे॑ । म॒न्त्र॒ऽकृता॑म् । स्तोमैः॑ । कश्य॑प । उ॒त्ऽव॒र्धय॑न् । गिरः॑ । सोम॑म् । न॒म॒स्य॒ । राजा॑नम् । यः । ज॒ज्ञे । वी॒रुधा॑म् । पतिः॑ । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥ ९.११४.२

Rigveda » Mandal:9» Sukta:114» Mantra:2 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:28» Mantra:2 | Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋषे) हे सर्वव्यापक (कश्यप) सर्वद्रष्टा परमात्मन् ! आप (मन्त्रकृतां, स्तोमैः) स्तुतियुक्त मन्त्रानुष्ठान करनेवाले उपासकों की (गिरः) उपासनारूप वाणियों को (उद्वर्धयन्) बढ़ाते हुए उपासक का कल्याण करें, (यः) जो उपासक (सोमं, राजानं) सोमस्वभाव परमात्मा को (नमस्य) प्रभु मानकर (यज्ञे) प्रकाशित होता है, (वीरुधां, पतिः) आप वनस्पतियों के स्वामी हैं, इसलिये (इन्द्राय) उपासक के लिये (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (परि, स्रव) ज्ञानद्वारा उसके हृदय में व्याप्त हों ॥२॥
Connotation: - जो परमात्मा चराचर ब्रह्माण्डों का पति है, उससे यहाँ ज्ञानयोग की प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मन् ! ज्ञानवर्द्धक वाणियों द्वारा उपासक के हृदय में ज्ञान की वृद्धि करें ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋषे) हे सर्वव्यापक (कश्यप) सर्वद्रष्टः परमात्मन् ! भवान् (मन्त्रकृताम्, स्तोमैः) मन्त्रानुष्ठानकर्तॄणां स्तुतियुक्तानामुपासकानां (गिरः) उपासनारूपवाचः (उद्वर्धयन्) उन्नमयन् उपासककल्याणं करोतु, (यः) यः उपासकः (सोमं) सोमस्वभावं (राजानं) परमात्मानं (नमस्य) प्रभुं मत्वा (जज्ञे) प्रकटो भवति, भवान् (वीरुधां, पतिः) वनस्पतीनां स्वामी अतः (इन्द्राय) यः उपासकस्तदर्थं (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् (परि, स्रव) ज्ञानद्वारा व्याप्नुहि ॥२॥