ब॒भ्रवे॒ नु स्वत॑वसेऽरु॒णाय॑ दिवि॒स्पृशे॑ । सोमा॑य गा॒थम॑र्चत ॥
English Transliteration
babhrave nu svatavase ruṇāya divispṛśe | somāya gātham arcata ||
Pad Path
ब॒भ्रवे॑ । नु । स्वऽत॑वसे । अ॒रु॒णाय॑ । दि॒वि॒ऽस्पृशे॑ । सोमा॑य । गा॒थम् । अ॒र्च॒त॒ ॥ ९.११.४
Rigveda » Mandal:9» Sukta:11» Mantra:4
| Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:36» Mantra:4
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:4
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - हे मनुष्यों ! तुम (बभ्रवे) ‘बिभर्तीति बभ्रुः’ जो विश्वम्भर परमात्मा है और जो (स्वतवसे) बलस्वरूप है और (दिविस्पृशे) जो द्युलोक तक फैला हुआ है (सोमाय) चराचर संसार का उत्पन्न करनेवाला है (अरुणाय) “ऋच्छतीत्यरुणः” जो सर्वव्यापक है, उसकी (नु) शीघ्र ही (गाथम्) स्तुति (अर्चत) करो ॥४॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे पुरुषो ! तुम ऐसे पुरुष की स्तुति करो, जो पूर्ण पुरुष अर्थात् द्युभ्वादि सब लोकों में पूर्ण हो रहा है और तेजस्वी और सर्वव्यापक है। इस भाव को वेद के अन्यत्र भी कई एक स्थलों में वर्णन किया है, जैसा कि “यस्य भूमिः प्रमान्तरिक्षमुतोदरम्। दिवं यश्चक्रे मूर्धानं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः” अ १०।४।७ कि जिस की भूमि ज्ञान का साधन है, अन्तरिक्ष जिसका उदरस्थानीय है, जिस में द्युलोक मस्तक के सदृश कहा जा सकता है, उस सर्वोपरि ब्रह्म को हमारा नमस्कार है। जैसा इस मन्त्र में रूपकालङ्कार से द्युलोक को मूर्धास्थानीय कल्पना किया है, इसी प्रकार ‘दिविस्पृशम्’ इस शब्द में द्युलोक के साथ स्पर्श करनेवाला भी रूपकालङ्कार से वर्णन किया है, मुख्य नहीं।यही भाव “नभस्पृशं दीप्तमनेकवर्णम्” गीता इत्यादि के श्लोकों में वर्णित है ॥४॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - भो मनुष्याः ! यूयं (बभ्रवे) विश्वम्भराय (स्वतवसे) बलस्वरूपिणे (दिविस्पृशे) आद्युलोकं व्याप्ताय (सोमाय) जगदुत्पादकाय (अरुणाय) सर्वव्यापकाय (नु) शीघ्रं (गाथम्) स्तुतिं (अर्चत) प्रादुर्भावयत ॥४॥