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आ सो॑म सुवा॒नो अद्रि॑भिस्ति॒रो वारा॑ण्य॒व्यया॑ । जनो॒ न पु॒रि च॒म्वो॑र्विश॒द्धरि॒: सदो॒ वने॑षु दधिषे ॥

English Transliteration

ā soma suvāno adribhis tiro vārāṇy avyayā | jano na puri camvor viśad dhariḥ sado vaneṣu dadhiṣe ||

Pad Path

आ । सो॒म॒ । सु॒वा॒नः । अद्रि॑ऽभिः । ति॒रः । वारा॑णि । अ॒व्यया॑ । जनः॑ । न । पु॒रि । च॒म्वोः॑ । वि॒श॒त् । हरिः॑ । सदः॑ । वने॑षु । द॒धि॒षे॒ ॥ ९.१०७.१०

Rigveda » Mandal:9» Sukta:107» Mantra:10 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:10


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (अद्रिभिः) चित्तवृत्तियों द्वारा (सुवानः) साक्षात्कार को प्राप्त हुए आप (वाराणि) वरणीय अन्तःकरणों को (आविशत्) प्रवेश करते हैं, (हरिः) कर्मों का अधिष्ठाता परमात्मा (अव्यया) जो सर्वरक्षक है, वह (तिरः) अज्ञान को तिरस्कार करके (वनेषु) भक्तिभाजन अन्तःकरणों में विराजमान होता है और उनको (सदः) स्थिति का स्थान बनाकर (दधिषे) ज्ञान का प्रकाश करता है, (न) जिस प्रकार (जनः) जनसमुदाय (चम्वोः) अधिष्ठानरूप (पुरि) पुरी को प्रवेश करता है, इसी प्रकार परमात्मज्ञान पुरीरूप अन्तःकरण में प्रवेश करता है ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा की व्यापकता वर्णन की गई है ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (अद्रिभिः) चित्तवृत्तिभिः (सुवानः) साक्षात्कृतो भवान् (वाराणि) वरणीयान्तःकरणानि (आविशत्) प्रविशति (हरिः) कर्माधिष्ठाता परमात्मा (अव्यया) सर्वरक्षकः (तिरः) अज्ञानं तिरस्कृत्य (वनेषु) भक्तियुक्तान्तःकरणेषु विराजते तादृशान्तःकरणं च (सदः)  स्थितिस्थानं निर्माय (दधिषे) ज्ञानं प्रकाशयति (न) यथा (जनः) जनसमुदायः (चम्वोः) अधिष्ठानरूपां (पुरि) पुरीं (विशत्) प्रविशति, एवं परमात्मज्ञानमपि पुरीरूपेऽन्तःकरणे प्रविशति ॥१०॥