अ॒या प॑वस्व देव॒युर्मधो॒र्धारा॑ असृक्षत । रेभ॑न्प॒वित्रं॒ पर्ये॑षि वि॒श्वत॑: ॥
English Transliteration
ayā pavasva devayur madhor dhārā asṛkṣata | rebhan pavitram pary eṣi viśvataḥ ||
Pad Path
अ॒या । प॒व॒स्व॒ । दे॒व॒ऽयुः । मधोः॑ । धाराः॑ । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । रेभ॑न् । प॒वित्र॑म् । परि॑ । ए॒षि॒ । वि॒श्वतः॑ ॥ ९.१०६.१४
Rigveda » Mandal:9» Sukta:106» Mantra:14
| Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:4
| Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:14
Reads times
ARYAMUNI
Word-Meaning: - (देवयुः) वह परमात्मा विद्वानों को पवित्र करनेवाला है, (मधोः धारा) जिसकी आनन्दमय धारा (असृक्षत) अविर्भाव को प्राप्त की जाती है। (अया) उक्त धारा से हे परमात्मन् ! (पवस्व) आप हमको पवित्र करें, क्योंकि आप (विश्वतः) सब प्रकार से (पवित्रं) पवित्र अन्तःकरण को (रेभन्) शब्दायमान होते हुए (पर्येषि) प्राप्त होते हैं ॥१४॥
Connotation: - परमात्मा का शब्दायमान होना इसी तात्पर्य्य से है कि वह अपने वेदरूपी शब्दब्रह्म द्वारा शब्दायमान है अर्थात् वेद के सदुपदेश द्वारा लोगों को बोधित करता है ॥१४॥ यह १०६ वाँ सूक्त और ११ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times
ARYAMUNI
Word-Meaning: - (देवयुः) विदुषां पावयिता सः (मधोः, धाराः) यस्यानन्दधाराः (असृक्षत) आविर्भाव्यन्ते, हे परमात्मन् ! (अया) आभिर्धाराभिः (पवस्व) पुनातु माम्, यतो भवान् (विश्वतः) सर्वतः (पवित्रम्) पूतान्तःकरणं (रेभन्) शब्दायमानः (पर्येषि) प्राप्नोति ॥१४॥ इति षडधिकशततमं सूक्तमेकादशो वर्गश्च समाप्तः ॥