Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! आप (व्रजम्) व्रजतीति व्रजः–अन्धकार, जो ज्ञानरूप प्रकाश से दूर भाग जाय, उसको (क्रत्वा) कर्म्मों के द्वारा (शुक्रेभिः, अक्षभिः) बलवान् ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा (दिवः) द्युलोक से (अपर्णोः) दूर करें और (प्राध्वरे) इस ज्ञानयज्ञ में (ऋतस्य, दीधितिं) सच्चाई के प्रकाश को (हिन्वन्) प्रेरणा करते हुए आप हमारे अज्ञान को दूर करें ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में अज्ञान की निवृत्ति के साधनों का वर्णन है अर्थात् जो पुरुष ज्ञानादि द्वारा जप-तप आदि संयमसम्पन्न होकर तेजस्वी बनते हैं, वे अज्ञान को निवृत्त करके प्रकाशस्वरूप ब्रह्म में विराजमान होते हैं ॥८॥ यह १०२ वाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥