Word-Meaning: - वह परमात्मा (ऋतस्य) इस संसार के (मातरा) निर्माण करनेवाले द्युलोक और पृथिवीलोक को रचता है, वह द्युलोक और पृथिवीलोक (समीचीने) सुन्दर हैं, (यह्वी) बड़े हैं, (तन्वानाः) इस प्रकृतिरूपी तन्तुजाल के विस्तृत करनेवाले हैं और (त्मना) उस परमात्मा के आत्मभूत सामर्थ्य से उत्पन्न हुए हैं। (यत्) जब योगी लोग (यज्ञं) इस ज्ञानयज्ञ को (आनुषक्) आनुषङ्गिकरूप से सेवन करते हैं अर्थात् साधनरूप से आश्रयण करते हैं, तो (अभ्यञ्जते) उक्त परमात्मा के साक्षात्कार को प्राप्त होते हैं ॥७॥
Connotation: - जो लोग इस कार्य्यसंसार और इसके कारणभूत ब्रह्म के साथ यथायोग्य व्यवहार करते हैं, वे शक्तिसम्पन्न होकर इस संसार की यात्रा करते हैं ॥७॥