Word-Meaning: - (सोमः) सर्वोत्पादक परमात्मा (सहस्रधारः) अनन्त प्रकार के आनन्दों की वृष्टि करनेवाला और (समुद्रः) सम्पूर्ण भूतों का उत्पत्तिस्थान (वाचमीङ्खयः) वाणियों का प्रेरक (रयीणाम्) सब प्रकार के ऐश्वर्यों का (पतिः) स्वामी (दिवे दिवे) जो प्रतिदिन (इन्द्रस्य) कर्मयोगी का (सखा) मित्र है, वह परमात्मा (पवते) सन्मार्ग से गिरे हुए लोगों को पवित्र करता है ॥६॥
Connotation: - परमात्मा को सहस्रधार इसलिये कथन किया गया है कि वह अनन्तशक्तियुक्त है। धारा शब्द के अर्थ यहाँ शक्ति है। “सम्यग् द्रवन्ति भूतानि यस्मिन् स समुद्रः” इस व्युत्पत्ति से यहाँ समुद्र नाम परमात्मा का है, इसी अभिप्राय से उपनिषद् में कहा है कि, “यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति” यहाँ (पवते) के अर्थ सायणाचार्य्य ने क्षरति किये हैं, जो व्याकरण से सर्वथा विरुद्ध है ॥६॥