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प्र वां॒ स्तोमा॑: सुवृ॒क्तयो॒ गिरो॑ वर्धन्त्वश्विना । पुरु॑त्रा॒ वृत्र॑हन्तमा॒ ता नो॑ भूतं पुरु॒स्पृहा॑ ॥

English Transliteration

pra vāṁ stomāḥ suvṛktayo giro vardhantv aśvinā | purutrā vṛtrahantamā tā no bhūtam puruspṛhā ||

Pad Path

प्र । वा॒म् । स्तोमाः॑ । सु॒ऽवृ॒क्तयः॑ । गिरः॑ । व॒र्ध॒न्तु॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । पुरु॑ऽत्रा । वृत्र॑हन्ऽतमा॒ । ता । नः॒ । भू॒त॒म् । पु॒रु॒ऽस्पृहा॑ ॥ ८.८.२२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:8» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:29» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:22


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे अश्विद्वय ! अपने गुणों से प्रजा हृदयव्यापक राजा तथा अमात्य (वाम्) आप दोनों को (स्तोमाः) हमारी नवीन विरचित स्तोत्र और (सुवृक्तयः) दोषरहित (गिरः) हम प्रजाओं की विविध भाषाएँ (प्र+वर्धन्तु) अच्छे प्रकार सम्मानित करें (पुरुत्रा) हे बहुतों के त्राता (वृत्रहन्तमा) हे अखिल विघ्नों के अतिशय विनाशक राजन् और अमात्य (ता) वे आप दोनों (नः) हम लोगों के (पुरुस्पृहा) बहुस्पृहणीय=बहुप्रेमी (भूतम्) होवें ॥२२॥
Connotation: - राजा और अमात्यवर्ग वैसा बर्ताव करें, जिससे प्रजाओं के माननीय होवें ॥२२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे व्यापक (सुवृक्तयः) सुन्दर निर्माण किये हुए (स्तोमाः, गिरः) स्तुतिवाक्य (वाम्) आपको (वर्धन्तु) बढ़ाएँ (पुरुत्रा) हे बहुतों के रक्षक (वृत्रहन्तमा) शत्रुओं के अतिशय विघातक ! (तौ) वे आप (नः) हमारे (पुरुस्पृहा) अतिशय स्पृहणीय (भूतम्) हों ॥२२॥
Connotation: - हे सर्वत्र प्रसिद्ध सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! हम लोग वेदवाणियों द्वारा आपकी वृद्धि की प्रार्थना करते हैं। हे सर्वरक्षक ! आप हमारे समीप हों, ताकि हम अपने इष्ट कामों को निर्विघ्न समाप्त कर सकें ॥२२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमर्थमाह।

Word-Meaning: - हे अश्विना=अश्विनौ ! राजामात्यौ ! स्तोमाः=नवीना विरचिताः स्तुतयः। अपि च। सुवृक्तयः=दोषवर्जिताश्च। गिरः=प्रजानां विविधा भाषाः। वाम्=युवाम्। प्रवर्धन्तु=प्रवर्धयन्तु। युवयोः कीर्तिं गायन्तु। हे पुरुत्रा=पुरूणां बहूनां त्रातारौ। हे वृत्रहन्तमा=वृत्राणां निखिलविघ्नानामतिशयेन हन्तारौ। हे पुरुस्पृहा=पुरुभिर्बहुभिः स्पृहणीयौ बहूनां स्पृहयितारो वा। ता=तौ युवाम्। नोऽस्माकं रक्षितारौ। भूतम्=भवतमिति प्रार्थये ॥२२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) व्यापकौ ! (सुवृक्तयः) सुरचिताः (स्तोमाः, गिरः) स्तुतिवाचः (वाम्, प्रवर्धन्तु) युवां प्रवर्धयन्तु (पुरुत्रा) हे बहुरक्षकौ (वृत्रहन्तमा) शत्रुनाशकतमौ (ता) तौ ! (नः) अस्माकम् (पुरुस्पृहा) अतिप्रियौ (भूतम्) भवतम् ॥२२॥