निरा॑विध्यद्गि॒रिभ्य॒ आ धा॒रय॑त्प॒क्वमो॑द॒नम् । इन्द्रो॑ बु॒न्दं स्वा॑ततम् ॥
English Transliteration
nir āvidhyad giribhya ā dhārayat pakvam odanam | indro bundaṁ svātatam ||
Pad Path
निः । अ॒वि॒ध्य॒त् । गि॒रिऽभ्यः॑ । आ । धा॒रय॑त् । प॒क्वम् । ओ॒द॒नम् । इन्द्रः॑ । बु॒न्दम् । सुऽआ॑ततम् ॥ ८.७७.६
Rigveda » Mandal:8» Sukta:77» Mantra:6
| Ashtak:6» Adhyay:5» Varga:30» Mantra:1
| Mandal:8» Anuvak:8» Mantra:6
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - (वृत्रहा) निखिल विघ्नों का विनाशक वह राजा (तान्) उन चोर डाकू आदि जगत् के शत्रुओं को (सम्+अखिदत्) रगड़ डाले अर्थात् उन्हें निर्मूल कर दे। यहाँ दृष्टान्त देते हैं (इव) जैसे (खे) किसी छिद्र में रखकर (खेदया) रस्सी से (अरान्) छोटे-छोटे डंडों को रगड़ते हैं, इस प्रकार जो राजा (दस्युहा) जगत् के उपद्रवकारी चोर, डाकू, आततायी आदिकों को दण्ड देकर सुपथ में लाया करता है, वही (प्रवृद्धः) इस जगत् में उत्तरोत्तर उन्नत (अभवत्) होता जाता है ॥३॥
Connotation: - राजा निरालस्य होकर प्रजाओं के सम्पूर्ण विघ्नों को दूर करने के लिये पूर्ण चेष्टा करे, तभी वह प्रजाप्रिय हो सकता है ॥३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - वृत्रहा=समस्तविघ्नविनाशकः स राजा। तान्=तान्=सर्वान् जगतः शत्रून्। समखिदत्+इत्=विकृष्येदेव उत्खातयेदित्यर्थः। अत्र दृष्टान्तः। खे=छिद्रे। अरान् इव। खेदया=रज्ज्वा। इत्थं दस्युहा राजा जगति। प्रवृद्धः=उन्नतिशीलः। अभवत्=भवति ॥३॥