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इन्द्रं॑ प्र॒त्नेन॒ मन्म॑ना म॒रुत्व॑न्तं हवामहे । अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥

English Transliteration

indram pratnena manmanā marutvantaṁ havāmahe | asya somasya pītaye ||

Pad Path

इन्द्र॑म् । प्र॒त्नेन॑ । मन्म॑ना । म॒रुत्व॑न्तम् । ह॒वा॒म॒हे॒ । अ॒स्य । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥ ८.७६.६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:76» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:5» Varga:27» Mantra:6 | Mandal:8» Anuvak:8» Mantra:6


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसके कार्य्य का गान करते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यों ! यह (मरुत्सखा) प्राणों का सखा (वावृधानः) त्रिभुवनों के हितों को बढ़ाता हुआ और (समुद्रियाः) आकाश में गमन करनेवाले मेघरूप (अपः) जलों को (सृजन्) रचता हुआ (इन्द्रः) परमात्मा (वृत्रम्) उनके विघ्नों को (वि+ऐरयत्) दूर करता है, अतः वही स्तवनीय है ॥३॥
Connotation: - इस ऋचा में विशेष बात यह दिखलाई गई है कि जल के परमाणुओं को मेघरूप में विरचनेवाला जगदीश ही है। कैसा आश्चर्य प्रबन्ध है, आकाश में मेघ दौड़ रहे हैं, हे मनुष्यों ! इसकी अद्भुत कला देखो ॥३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तस्यैव कार्य्यं गीयते।

Word-Meaning: - हे मनुष्याः ! अयं मरुत्सखेन्द्रः। वावृधानः=जगतां हितानि वर्धयन्। समुद्रियाः=आकाशीयाः। अपः=जलानि च। सृजन्=विरचयन्। वृत्रं=तन्निवारकं विघ्नम्। व्यैरयत्। दूरे प्रक्षिपति। अतः स स्तवनीय इत्यर्थः ॥३॥