Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमैश्वर्य्यशाली (शविष्ठ) हे महा महाशक्तिधारी देव ! (अस्मयुः) हम लोगों के ऊपर प्रेम करता हुआ (त्वम्) तू (नः) हमको (दावने) देने के लिये (आसाम्) इन गौ, भूमि, हिरण्य आदि सम्पत्तियों को (हस्ते+संगृभाय) अपने हाथ में ले लो, (धानानाम्+न) जैसे चर्वण करनेवाला हाथ में धाना लेता है, तद्वत्। हे भगवन् (अस्मयुः) हम लोगों को कृपादृष्टि से देखता और चाहता हुआ तू (द्विः) वारंवार (संगृभाय) उन सम्पत्तियों को हाथ में ले और यथाकर्म हम लोगों में बाँट दे ॥१२॥
Connotation: - यह प्रेममय प्रार्थना है, जैसे बालक अपने पिता माता से खानपान के लिये याचना करता रहता है, तद्वत् सबका समान पिता उस जगदीश से हम अपनी आवश्यकताएँ माँगें ॥१२॥