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उ॒शना॒ यत्प॑रा॒वत॑ उ॒क्ष्णो रन्ध्र॒मया॑तन । द्यौर्न च॑क्रदद्भि॒या ॥

English Transliteration

uśanā yat parāvata ukṣṇo randhram ayātana | dyaur na cakradad bhiyā ||

Pad Path

उ॒सना॑ । यत् । प॒रा॒ऽवतः॑ । उ॒क्ष्णः । रन्ध्र॑म् । अया॑तन । द्यौः । न । च॒क्र॒द॒त् । भि॒या ॥ ८.७.२६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:7» Mantra:26 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:26


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी को दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - पुनः मरुत् का वर्णन करते हैं। हे मरुतो ! (यत्) जब मानो, (उशना) इच्छा करते हुए आप (परावतः) किसी दूरदेश से आकर (उक्ष्णः) वर्षाकारी आकाश के (रन्ध्रम्) मध्य (अयातन) आते हैं, तब (द्यौः+न) द्युलोक के समान पृथिवी भी (भिया) भय से (चक्रदत्) काँपने लगती है ॥२६॥
Connotation: - यह भी स्वाभाविक वर्णन है। वायु यद्यपि सर्वत्र पृथिवी पर विद्यमान है, तथापि जब भारतवर्ष में पूर्वीय या पश्चिमीय वायु चलता है, तो निश्चय नहीं होता कि यह कहाँ से चलकर आया है। ज्यों-ज्यों दिन बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों वायु का वेग तेज होता जाता है, यहाँ तक की मध्याह्न में वैशाख, ज्येष्ठ का वायु अतिशय असह्य हो जाता। लोग गृह बन्द कर बैठते हैं। यह दृश्य भारतवासियों को अच्छे प्रकार विदित है। शरीर के भीतर भी जब वायु का प्रकोप होता है, तब यही दशा होती है ॥२६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यत्) जब (उशना) रक्षा को चाहते हुए योधालोग (उक्ष्णः) कामनाओं की वर्षा करनेवाले अपने रथ पर (रन्ध्रम्) मध्यभाग में (अयातन) जाकर बैठते हैं तब (परावतः) दूर से ही (द्यौः, न) मेघाच्छन्न द्युलोक के समान (भिया) भय से यह लोक भी (चक्रदत्) आन्दोलित होने लगता है ॥२६॥
Connotation: - “उक्षति सिञ्चति कामान् इति उक्षा”=जो नाना प्रकार की कामनाओं की वृष्टि करे, उसका नाम “उक्षा” है। इस प्रकार के कामना देनेवाले यानों पर आरूढ़ होकर जो योद्धा लोग युद्ध में जाते हैं, उनसे सब भयभीत होते और वे ही विजय को प्राप्त होते हैं, अन्य नहीं। स्मरण रहे कि “उक्षा” शब्द का अर्थ यहाँ सायणाचार्य्य ने कामनाओं की वृष्टि करनेवाला किया है। जो लोग उक्त शब्द को बलीवर्द=बैल का वाचक मानकर गवादि पशुओं का बलिदान कथन करते हैं, उनका कथन वेदाशय से सर्वथा विरुद्ध है, क्योंकि “उक्षा” शब्द सिञ्चन करने तथा कामनाओं की पूर्ति करने के अर्थों में आता है, किसी पशु-पक्षी के बलिदान के लिये नहीं ॥२६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदेव दर्शयति।

Word-Meaning: - हे मरुतः। यद्=यदा। यूयम्। उशना=उशनसः कामयमाना इव। परावतः=कस्माच्चिदपि दूरदेशात् आगत्य। उक्ष्णः=वर्षितुः आकाशस्य। रन्ध्रम्=मध्यम्=अयातन= अगच्छन्=गच्छन्ति। तदा। द्यौर्न=द्यौरिव पृथिव्यपि। भिया=भयेन। चक्रदत्=अशब्दयत्=कम्पत इत्यर्थः ॥२६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यत्) यदा (उशना) रक्षां कामयमानाः ते (उक्ष्णः) कामानां वर्षितुः स्वरथस्य (रन्ध्रम्) मध्यभागम् (अयातन) यान्ति तदा (परावतः) दूरादेव (द्यौः, न) मेघाच्छन्ना द्यौरिव (भिया) तद्भयेन अयं लोकः (चक्रदत्) कम्पितो भवति ॥२६॥