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समु॒ त्ये म॑ह॒तीर॒पः सं क्षो॒णी समु॒ सूर्य॑म् । सं वज्रं॑ पर्व॒शो द॑धुः ॥

English Transliteration

sam u tye mahatīr apaḥ saṁ kṣoṇī sam u sūryam | saṁ vajram parvaśo dadhuḥ ||

Pad Path

सम् । ऊँ॒ इति॑ । त्ये । म॒ह॒तीः । अ॒पः । सम् । क्षो॒णी । सम् । ऊँ॒ इति॑ । सूर्य॑म् । सम् । वज्र॑म् । प॒र्व॒ऽशः । द॒धुः॒ ॥ ८.७.२२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:7» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:22


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SHIV SHANKAR SHARMA

वायु का स्वभाव दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (त्ये) वे सुप्रसिद्ध मरुद्गण (महतीः+अपः) बहुत जल (सन्दधुः) ओषधि आदि पदार्थों के साथ मिलते हैं। (उ) पुनः (क्षोणीः) द्युलोक और पृथिवी को (सम्) अपनी शक्ति से मिलाते हैं (उ) और (सूर्य्यम्) सूर्य को (सम्) पदार्थों के साथ मिलाते हैं तथा विघ्नों के (पर्वशः) अङ्ग-अङ्ग पर (वज्रम्+सम्) अपने आयुध को रखते हैं ॥२२॥
Connotation: - वेद में विचित्र प्रकार का कहीं-२ वर्णन आता है। वायु से क्या-क्या घटना होती रहती है, यह इससे दिखलाते हैं। वायु के योग से जल होता है, यह प्रत्यक्ष है। क्षोणी अर्थात् द्युलोक और पृथिवीलोक के मध्य यदि वायु न हो, तो दोनों को परस्पर उपकार न हो। इसी प्रकार सूर्य का किरण वायु के द्वारा ही पृथिवी पर गिरता है और वायु से नाना रोगों और विघ्नों का भी नाश होता है ॥२२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (त्ये) वे योद्धा लोग (महतीः, अपः) महान् जलों का (समु) सन्धान करते हैं (क्षोणी) पृथिवी का (सम्) सन्धान करते और (सूर्यम्, समु) सूर्य का सन्धान करते हैं (पर्वशः) कठोर स्थलों को तोड़ने के लिये (वज्रम्) विद्युत्शक्ति का (सन्दधुः) सन्धान करते हैं ॥२२॥
Connotation: - उपर्युक्त वर्णित विद्वान् पुरुष बड़े-बड़े आविष्कार करके प्रजा को सब प्रकार से सुखी करते हैं अर्थात् जलों के संशोधन की विद्या का उपदेश करते और अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों का प्रकाश करते हैं, जिससे शत्रु का सर्वथा दमन हो और इसी कारण वे विद्वान् पूजार्ह होते हैं ॥२२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

वायुस्वभावं दर्शयति।

Word-Meaning: - त्ये=ते सुप्रसिद्धा मरुतः। महतीः। अपो जलानि। सन्दधुः=सन्दधति। ओषध्यादिभिः संयोजयन्ति। पुनः। क्षोणी=द्यावापृथिव्यौ। सन्दधुः। पुनः। सूर्यं सन्दधुः। पुनः। पर्वशः=विघ्नानां पर्वणि पर्वणि। वज्रमायुधम्। सन्दधुः। उ शब्दश्चार्थः ॥२२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (त्ये) ते योद्धारः (महतीः, अपः) महान्ति जलानि (समु) सन्दधति (क्षोणी) पृथिवीं च (सम्) संदधति (सूर्यम्, समु) सूर्यं च सन्दधति (पर्वशः) कठोराण्यङ्गानि विदारयितुं (वज्रम्) शस्त्रं च (सन्दधुः) सन्दधति ॥२२॥