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इ॒मा उ॑ वः सुदानवो घृ॒तं न पि॒प्युषी॒रिष॑: । वर्धा॑न्का॒ण्वस्य॒ मन्म॑भिः ॥

English Transliteration

imā u vaḥ sudānavo ghṛtaṁ na pipyuṣīr iṣaḥ | vardhān kāṇvasya manmabhiḥ ||

Pad Path

इ॒माः । ऊँ॒म् । वः॒ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । घृ॒तम् । न । पि॒ष्युषीः॑ । इषः॑ । वर्धा॑न् । का॒ण्वस्य॑ । मन्म॑ऽभिः ॥ ८.७.१९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:7» Mantra:19 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:19


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SHIV SHANKAR SHARMA

अन्नों से प्राणों की वृद्धि होती है, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (सुदानवः) हे शोभनदानदाता प्राणो ! (घृतम्+न) घृत के समान (पिप्युषीः) शरीर के पुष्टि करनेवाले (इषः) अन्न (काण्वस्य+मन्मभिः) आत्मा के मनन के द्वारा (वः+उ) तुमको (वर्धान्) बढ़ावें ॥१९॥
Connotation: - यह स्वाभाविक वर्णन है। प्राणों की पुष्टि अन्नों से होती है, यह प्रत्यक्ष है। आत्मा के योग के द्वारा सकल कार्य होना चाहिये, तब ही लाभ होता है। अतः मन्त्र में (काण्वस्य मन्मभिः) पद आया है ॥१९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुदानवः) हे शोभन दानवाले ! (काण्वस्य, मन्मभिः) विद्वानों के समूह के ज्ञानों द्वारा (घृतम्, न, पिप्युषीः) घृत के समान पोषक (इमाः, वः, इषः) यह आपके ऐश्वर्यपदार्थ (वर्धान्) बढ़ें ॥१९॥
Connotation: - इस मन्त्र में यह उपदेश किया है कि हे विद्वान् पुरुषो ! आप घृतादि पुष्टिप्रद पदार्थों को बढ़ायें अर्थात् उनकी रक्षा करें, जिससे बल-वीर्य्य की पुष्टि तथा वृद्धि द्वारा नीरोग रहकर ब्रह्मविद्या तथा ऐश्वर्य्य की वृद्धि करने में यत्नवान् हों ॥१९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अन्नैः प्राणवृद्धिर्भवतीति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे सुदानवः=शोभनदानाः प्राणाः। घृतं न=घृतमिव। पिप्युषीः=वर्धयित्र्यः। इमाः। इषः=अद्यमानानि अन्नानि। वः+उ=युष्मान्+उ। काण्वस्य=जीवस्य। मन्मभिः=मननैः सह। वर्धान्=वर्धयन्तु ॥१९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुदानवः) हे शोभनदानाः ! (काण्वस्य, मन्मभिः) विदुषां समुदायस्य ज्ञानैः (घृतं, न, पिप्युषीः) घृतमिव पोषकाः (इमाः, वः, इषः) इमं युष्माकमैश्वर्यपदार्थाः (वर्धान्, उ) वर्धन्ताम्, “उ” पूरणः ॥१९॥