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उद्यद्ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपं॑ गृ॒हमिन्द्र॑श्च॒ गन्व॑हि । मध्व॑: पी॒त्वा स॑चेवहि॒ त्रिः स॒प्त सख्यु॑: प॒दे ॥

English Transliteration

ud yad bradhnasya viṣṭapaṁ gṛham indraś ca ganvahi | madhvaḥ pītvā sacevahi triḥ sapta sakhyuḥ pade ||

Pad Path

उत् । यत् । ब्र॒ध्नस्य॑ । वि॒ष्टप॑म् । गृ॒हम् । इन्द्रः॑ । च॒ । गन्व॑हि । मध्वः॑ । पी॒त्वा । स॒चे॒व॒हि॒ । त्रिः । स॒प्त । सख्युः॑ । प॒दे ॥ ८.६९.७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:69» Mantra:7 | Ashtak:6» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:7


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे मनुष्यगण ! (यथा+विदे) जैसे विज्ञान और प्रख्यात पुरुष को पूजते हो वैसे ही (गिरा) स्वस्ववाणी से (अभि) अन्तःकरण के सर्वभाव से (इन्द्रम्) उस परमात्मा को (प्रार्च) पूजो, जो जगदीश (गोपतिम्) पृथिव्यादि लोकों का रक्षक है, (सत्यस्य+सूनुम्) सत्य का जनयिता और (सत्पतिम्) सत्पति है ॥४॥
Connotation: - परमेश्वर को प्रत्यक्ष देखते नहीं, अतः उसके अस्तित्व में लोग संदिग्ध रहते हैं और उसकी पूजा-पाठ में आलस्य करते हैं। इस कारण विश्वासार्थ कहा जाता है कि विज्ञात पुरुष जैसे देखते और उसको पूजते, तद्वत् उसको भी समझो। क्योंकि यदि वह न हो, तो ये पृथिवी आदि कहाँ से आएँ। उसको विचारो ॥४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे मनुष्यगण ! यथा+विदे=यथा विज्ञातं पुरुषमर्चसि तथैव। गिरा=वाण्या। तमिन्द्रम्। अभि=सर्वभावेन। प्रार्च=पूजय। कीदृशम्। गोपतिम्=पृथिव्यादिस्वामिनम्। सत्यस्य। सूनुमुत्पादकम्। पुनः सत्पतिम् ॥४॥