यहाँ से आगे कृतज्ञता प्रकाशित करते हैं।
Word-Meaning: - उस ईश्वर की कृपा से (सोमस्य+हर्ष्या) सोम के हर्ष से (द्वा+द्वा) दो-दो मिल के (षट्) छै दो नयन, दो नासिकाएँ और दो कर्ण ये छः प्रकार के इन्द्रिय (मा+उपतिष्ठन्ति) मुझे प्राप्त हैं, जो (नरः) अपने-अपने विषयों के नायक और शासक हैं। पुनः (स्वादुरातयः) जिनके दान स्वादिष्ट हैं ॥१४॥
Connotation: - षट्=नयन आदि इन्द्रिय संख्या में छै हैं, परन्तु साथ ही (द्वा) दो-दो हैं। अतः मन्त्र में “षट्” और “द्वा-द्वा” पद आए हैं। ये इन्द्रियगण यद्यपि सबको मिले हैं, तथापि विशेष पुरुष ही इनके गुणों और कार्य्यों से सुपरिचित हैं और विरले ही इनसे वास्तविक काम लेते हैं। ईश्वर की कृपा से जिनके इन्द्रियगण यथार्थ नायक और दानी हैं, वे ही पुरुष धन्य हैं ॥१४॥