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तरो॑भिर्वो वि॒दद्व॑सु॒मिन्द्रं॑ स॒बाध॑ ऊ॒तये॑ । बृ॒हद्गाय॑न्तः सु॒तसो॑मे अध्व॒रे हु॒वे भरं॒ न का॒रिण॑म् ॥

English Transliteration

tarobhir vo vidadvasum indraṁ sabādha ūtaye | bṛhad gāyantaḥ sutasome adhvare huve bharaṁ na kāriṇam ||

Pad Path

तरः॑ऽभिः । वः॒ । वि॒दत्ऽव॑सुम् । इन्द्र॑म् । स॒ऽबाधः॑ । ऊ॒तये॑ । बृ॒हत् । गाय॑न्तः । सु॒तऽसो॑मे । अ॒ध्व॒रे । हु॒वे । भर॑म् । न । का॒रिण॑म् ॥ ८.६६.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:66» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:48» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - इन्द्रनामी परमात्मा (मे+दाता) मेरा दाता है या वह मेरा दाता होवे, क्योंकि वह (हिरण्यवीनाम्) सुवर्णवत् हितकारिणी (वृषतीनाम्) नाना वर्णों की गायों अन्यान्य पशुओं तथा धनों का (राजा) शासक स्वामी है। (देवाः) हे विद्वान् जनो ! जिससे (मघवा) वह परम धनसम्पन्न परमात्मा हम प्राणियों पर (मा+रिषत्) रुष्ट न होवे, ऐसी शिक्षा और अनुग्रह हम लोगों पर करो ॥१०॥
Connotation: - मनुष्यों की प्रिय वस्तु गौ है, क्योंकि थोड़े ही परिश्रम से वह बहुत उपकार करती है। स्वच्छन्दतया वन में चरकर बहुत दूध देती है। अतः इस पशु की प्राप्ति के लिये अधिक प्रार्थना आती है और जो जन धन-जन-ज्ञानादिकों से हीन हैं, वे समझते ही हैं कि हमारे ऊपर उसकी उतनी कृपा नहीं है, अतः “मघवा रुष्ट न हो” यह प्रार्थना है ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - इन्द्रः खलु। मे=मम। दाता भवतु। यतः सः। पृषतीनां=नानावर्णानां गवां राजास्ति। कीदृशीनाम्− हिरण्यवीनाम्=हिरण्यवद्धितकारिणीनाम्। हे देव ! मघवेन्द्रः। अस्माकमुपरि। मा रिषत्=रुष्टो मा भूत् ॥१०॥