यद्वा॑ प्र॒स्रव॑णे दि॒वो मा॒दया॑से॒ स्व॑र्णरे । यद्वा॑ समु॒द्रे अन्ध॑सः ॥
English Transliteration
yad vā prasravaṇe divo mādayāse svarṇare | yad vā samudre andhasaḥ ||
Pad Path
यत् । वा॒ । प्र॒ऽस्रव॑णे । दि॒वः । मा॒दया॑से । स्वः॑ऽनरे । यत् । वा॒ । स॒मु॒द्रे । अन्ध॑सः ॥ ८.६५.२
Rigveda » Mandal:8» Sukta:65» Mantra:2
| Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:46» Mantra:2
| Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:2
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (शर्य्यणावति) इस विनश्वर शरीर में (सुसोमायाम्) इस रसमयी बुद्धि में और (आर्जीकीये) समस्त इन्द्रियों के सहयोग में (अधिश्रितः) आश्रित (ते) तेरे अनुग्रह से (मदिन्तमः) तेरा आनन्दजनक याग सदा हो रहा है। इसको ग्रहण कीजिये ॥११॥
Connotation: - याग दो प्रकार के हैं। जो विविध द्रव्यों से किया जाता है, वह बाह्य और जो इस शरीर में बुद्धि द्वारा अनुष्ठित होता है, वह आभ्यन्तर याग है। इसी को मानसिक, आध्यात्मिक आदि भी कहते हैं और यही यज्ञ श्रेष्ठ भी है ॥११॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे इन्द्र ! शर्य्यणावति=विशरणवति=विनश्वरे शरीरे। सुसोमायां=बुद्धौ। आर्जीकीये=इन्द्रियाणां मध्ये। अधिश्रितः=आश्रितः। ते=तव। मदिन्तमः=प्रियतमः। यज्ञः सर्वदा भवति तं जुषस्वेत्यर्थः ॥११॥