नपा॑तो दु॒र्गह॑स्य मे स॒हस्रे॑ण सु॒राध॑सः । श्रवो॑ दे॒वेष्व॑क्रत ॥
English Transliteration
napāto durgahasya me sahasreṇa surādhasaḥ | śravo deveṣv akrata ||
Pad Path
नपा॑तः । दुः॒ऽगह॑स्य । मे॒ । स॒हस्रे॑ण । सु॒ऽराध॑सः । श्रवः॑ । दे॒वेषु॑ । अ॒क्र॒त॒ ॥ ८.६५.१२
Rigveda » Mandal:8» Sukta:65» Mantra:12
| Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:47» Mantra:6
| Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:12
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे इन्द्र ! तू सबका साधारण (अर्य्यः) स्वामी है, अतः थोड़ी देर (विश्वान्) समस्त (विपश्चितः) तत्त्वज्ञ पण्डितों को भी, जिनके ऊपर स्वभावतः तेरी कृपा रहती है, उनको (अति) छोड़कर, (ख्यः) मूर्ख किन्तु तेरे भक्त हम जनों को देख और (तूयम्+आगहि) शीघ्र हमारी ओर आ और आकर (अस्मे) हम लोगों में (बृहत्) बहुत बड़ा (श्रवः) यश, अन्न, पुरस्कार आदि विविध वस्तु (धेहि) स्थापित कर ॥९॥
Connotation: - यह हम लोगों को अच्छे प्रकार मालूम है कि ईश्वर ज्ञानमय है, अतः ज्ञानी जन उसके प्रिय हैं। भक्तों से भी प्रिय ज्ञानी है। ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र वस्तु नहीं। परन्तु ईश्वर की प्रार्थना मूर्ख और पण्डित दोनों करते हैं। अतः यह स्वाभाविक प्रार्थना है। अपने स्वार्थ के लिये सब ही उसकी स्तुति प्रार्थना करते हैं ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे इन्द्र ! त्वं सर्वेषां साधारणः। अर्य्यः=स्वामी वर्तसे। अतः क्षणम्। विश्वान्=सर्वान्। विपश्चितः=तत्त्वज्ञान् पण्डितान् स्वभावतस्तव अनुग्रहान्। अति=अतिक्रम्य। ख्यः=अस्मानपि मूढान् तव भक्तान् पश्य। तूयम्। क्षिप्रम्। अस्मान्। आगहि=आगच्छ आगत्य च। अस्मे=अस्मासु। बृहत्। श्रवः=यशः। अन्नं पुरस्कार इत्येवंविधानि वस्तूनि। धेहि=निधेहि=स्थापय ॥९॥