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अ॒यं ते॒ मानु॑षे॒ जने॒ सोम॑: पू॒रुषु॑ सूयते । तस्येहि॒ प्र द्र॑वा॒ पिब॑ ॥

English Transliteration

ayaṁ te mānuṣe jane somaḥ pūruṣu sūyate | tasyehi pra dravā piba ||

Pad Path

अ॒यम् । ते॒ । मानु॑षे । जने॑ । सोमः॑ । पू॒रुषु॑ । सू॒य॒ते॒ । तस्य॑ । आ । इ॒हि॒ । प्र । द्र॒व॒ । पिब॑ ॥ ८.६४.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:64» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:45» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:10


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SHIV SHANKAR SHARMA

वृषभरूप से उस इन्द्र की स्तुति करते हैं।

Word-Meaning: - (स्यः) वह सर्वत्र प्रसिद्ध (वृषभः) निखिल कामनाप्रद वृष अर्थात् इन्द्र (क्व) कहाँ है, कौन जानता है, जो (युवा) नित्य तरुण और जीवों के साथ इस जगत् को मिलानेवाला है, (तुविग्रीवः) विस्तीर्णकन्धर अर्थात् सर्वत्र विस्तीर्ण व्यापक है, पुनः जो (अनानतः) अनम्रीभूत अर्थात् महान् उच्च से उच्च और सर्वशक्तिमान् है, (तम्) उस ईश्वर को (कः+ब्रह्मा) कौन ब्राह्मण (सपर्य्यति) पूज सकता है ॥७॥
Connotation: - जब उसके रहने का कोई पता नहीं है, तब कौन उसकी पूजाविधान कर सकता है अर्थात् वह अगम्य अगोचर है ॥७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

वृषत्वेनेन्द्रः स्तूयते।

Word-Meaning: - स्यः=सः। वृषभः=कामानां वर्षिता ईश्वरः। क्वास्तीति को वेत्ति। कीदृशः। युवा=तरुणः तथा जगदिदं जीवैः सह मिश्रयिता। पुनः। तुविग्रीवः=विस्तीर्णकन्धरः। तथा सर्वत्र विस्तीर्णः। अपि च अनानतः=न आनतः। न नम्रीभूतः। तञ्चेन्द्रम्। को ब्रह्मा सपर्य्यति=पूजयितुं शक्नोति ॥७॥