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दि॒वो मानं॒ नोत्स॑द॒न्त्सोम॑पृष्ठासो॒ अद्र॑यः । उ॒क्था ब्रह्म॑ च॒ शंस्या॑ ॥

English Transliteration

divo mānaṁ not sadan somapṛṣṭhāso adrayaḥ | ukthā brahma ca śaṁsyā ||

Pad Path

दि॒वः । मान॑म् । न । उत् । स॒द॒न् । सोम॑ऽपृष्ठासः । अद्र॑यः । उ॒क्था । ब्रह्म॑ । च॒ । शंस्या॑ ॥ ८.६३.२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:63» Mantra:2 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:42» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:2


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - (वृत्रहन्) हे निखिलविघ्ननिवारक (अद्रिवः) हे महादण्डधर (शूर) हे शूर ! (आसनिभ्यः) मुझको सुखलाभ जबतक हो, तबतक (अहम्+च+त्वम्+च) मैं और तू और यह संसार सब (संयुज्याव) मिल जाएँ। जिस प्रकार हम मनुष्य परस्पर सुख के लिये मिलते हैं, इसी प्रकार तू भी हमारे साथ संयुक्त हो। (नौ) इस प्रकार संयुक्त हम दोनों को (अरातिवा+चित्) दुर्जन जन भी (अनु+मंसते) अनुमति=अपनी सम्मति देवेंगे ॥११॥
Connotation: - इसका अभिप्राय यह है कि हमको तब ही सुख प्राप्त हो सकता है, जब हम ईश्वर से मिलें। मिलने का आशय यह है कि जिस स्वभाव का वह है, उसी स्वभाव के हम भी होवें। वह सत्य है, हम सत्य होवें। वह उपकारी है, हम उपकारी होवें। वह परम उदार है, हम परमोदार होवें इत्यादि। ऐसे-२ विषय में सबकी एक ही सम्मति भी होती है ॥११॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे वृत्रहन्=निखिलविघ्ननिवारक ! हे अद्रिवः= महादण्डधर ! हे शूर ! आ+सनिभ्यः=मम सुखलाभकालावधि। अहञ्च त्वञ्च। संयुज्याव। नौ=एवं संयुक्तौ आवाम्। अरातिवा चित्=अति दुर्जनोऽपि जनः। अनु+मंसते=अनुमंस्यति=अनुमतिं करिष्यति ॥११॥