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उ॒ग्रबा॑हुर्म्रक्ष॒कृत्वा॑ पुरंद॒रो यदि॑ मे शृ॒णव॒द्धव॑म् । व॒सू॒यवो॒ वसु॑पतिं श॒तक्र॑तुं॒ स्तोमै॒रिन्द्रं॑ हवामहे ॥

English Transliteration

ugrabāhur mrakṣakṛtvā puraṁdaro yadi me śṛṇavad dhavam | vasūyavo vasupatiṁ śatakratuṁ stomair indraṁ havāmahe ||

Pad Path

उ॒ग्रऽबा॑हुः । म्र॒क्ष॒ऽकृत्वा॑ । पु॒र॒म्ऽद॒रः । यदि॑ । मे॒ । शृ॒णव॑त् । हव॑म् । व॒सू॒यवो॒ वसु॑पतिं श॒तक्र॑तु॒म् स्तोमै॒र् इन्द्र॑म् हवामहे ॥ ८.६१.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:61» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:37» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:10


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (त्वम्+हि) तू अवश्य ही (चेरवे) स्वभक्तजनों के उद्धार के लिये जगत् में (एहि) आ और (वसुत्तये) मनुष्यों को अतिशय धनिक बनाने के लिये (भगम्+विदाः) परमैश्वर्य दे। तथा (मघवन्) हे परमैश्वर्ययुक्त (इन्द्र) हे महेश ! (गविष्टये) गौ आदि पशुओं को चाहनेवाले जगत् को गवादि पशुओं की (उद्+ववृषस्व) बहुत वर्षा कर तथा (अश्वमिष्टये) अश्व आदि पशुओं को चाहनेवाले जगत् को अश्वादि पशुओं की (उद्) बहुत वर्षा कर ॥७॥
Connotation: - ईश्वर की प्रार्थना, उस पर पूर्ण विश्वास और जगत् में पूर्ण उद्योग करके सब कोई सुखी होवें। दीन हीन रहना एक प्रकार का पाप ही है, अतः वेद में वारंवार धन के लिये प्रार्थना आती है। भिक्षावृत्ति की चर्चा वेद में नहीं है। यह भी पाप ही है ॥७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! त्वं हि=त्वं खलु। चेरवे=स्वभक्तमुद्धर्त्तुम्। एहि=आगच्छ। वसुत्तये=जनान् वसुमत्तमान् कर्तुम्। भगं=परमैश्वर्यम्। विदाः=लभस्व=देहि। हे मघवन्=परमधनवन् ईश ! त्वम्। गविष्टये=गोकामाय जगते। उद्ववृषस्व=उत्सिञ्चस्व। हे इन्द्र ! अश्वमिष्टये=अश्वकामाय जगते। उद्ववृषस्व। जगते गा अश्वांश्च देहीत्यर्थः ॥७॥