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केते॑न॒ शर्म॑न्त्सचते सुषा॒मण्यग्ने॒ तुभ्यं॑ चिकि॒त्वना॑ । इ॒ष॒ण्यया॑ नः पुरु॒रूप॒मा भ॑र॒ वाजं॒ नेदि॑ष्ठमू॒तये॑ ॥

English Transliteration

ketena śarman sacate suṣāmaṇy agne tubhyaṁ cikitvanā | iṣaṇyayā naḥ pururūpam ā bhara vājaṁ nediṣṭham ūtaye ||

Pad Path

केते॑न । शर्म॑न् । स॒च॒ते॒ । सु॒ऽसा॒मनि॑ । अग्ने॑ । तुभ्य॑म् । चि॒कि॒त्वना॑ । इ॒ष॒ण्यया॑ । नः॒ । पु॒रु॒ऽरूप॑म् । आ । भ॒र॒ । वाज॑न् । नेदि॑ष्ठम् । ऊ॒तये॑ ॥ ८.६०.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:60» Mantra:18 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:35» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे सर्वव्याप्त देव ! तू (मात्रोः) द्युलोक और पृथिवी के मध्य वर्तमान सर्व संसारों में (शेषे) व्याप्त है। (मर्तासः) मनुष्य (त्वा) तुझको ही (सम्+इन्धते) हृदय में प्रज्वलित करते हैं या तेरे ही नाम पर अग्नि को प्रज्वलित करते हैं। (आद्+इत्) तब तू (हविष्कृतः) उन यजमानों के (हव्या) हव्य पदार्थों को (अतन्द्रः) अनलस होकर (वहसि) इधर-उधर ले जाता है, तू ही (देवेषु) सूर्य्यादिक देवों में (राजसि) विराजमान है ॥१५॥
Connotation: - द्यावा पृथिवी का नाम माता है। ईश्वर के नाम पर ही अग्निहोत्रादि शुभकर्म करने चाहियें, क्योंकि अग्नि आदि देवों में वही विराजमान है। वह मनुष्य के प्रत्येक कर्म को देखता है। वही कर्मफलदाता है ॥१५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे अग्ने ! मात्रोः=द्यावापृथिव्योर्मध्ये वर्तमानेषु। “द्यावापृथिव्यौ मातरावुच्येते” वनेषु=संसारेषु। त्वं शेषे=स्वपिषि व्याप्नोषि। त्वा=त्वामेव। मर्तासः=मर्त्याः। समिन्धते=प्रदीपयन्ति हृदये। आदित्=अनन्तरमेव। हे भगवन् ! त्वमतन्द्रः=अनलसः सन् हविष्कृतो= यजमानस्य। यागे। हव्या=हव्यानि। वहसि=यथास्थानं प्रापयसि। त्वमेव देवेषु=सूर्य्यादिषु। राजसि=प्रकाशसे ॥१५॥