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शेषे॒ वने॑षु मा॒त्रोः सं त्वा॒ मर्ता॑स इन्धते । अत॑न्द्रो ह॒व्या व॑हसि हवि॒ष्कृत॒ आदिद्दे॒वेषु॑ राजसि ॥

English Transliteration

śeṣe vaneṣu mātroḥ saṁ tvā martāsa indhate | atandro havyā vahasi haviṣkṛta ād id deveṣu rājasi ||

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Pad Path

शेषे॑ । वने॑षु । मा॒त्रोः । सम् । त्वा॒ । मर्ता॑सः । इ॒न्ध॒ते॒ । अत॑न्द्रः । ह॒व्या । व॒ह॒सि॒ । ह॒विः॒ऽकृतः॑ । आत् । इत् । दे॒वेषु॑ । रा॒ज॒सि॒ ॥ ८.६०.१५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:60» Mantra:15 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:34» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:15


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - (येन) जिस धन से या ज्ञान से (पृतनासु) व्यावहारिक और पारमार्थिक संग्रामों में (शर्धतः) बल करते हुए (अर्य्यः) शत्रुओं को और (आदिशः) उनके गुप्त विचारों और मन्त्रों को (तरन्तः) दबाते हुए हम उपासकगण (वंसाम) नष्ट-भ्रष्ट कर देवें, वह धन दे और (सः+त्वम्) वह तू (नः) हमको (प्रयसा) अन्नों के साथ (वर्ध) बढ़ा। (शचीवसो) हे ज्ञान और कर्म के बल से बसानेवाले ईश्वर ! तू (धियः+जिन्व) हमारी बुद्धियों और कर्मों को (जिन्व) तेज बना, जो बुद्धियाँ कर्म (वसुविदः) धन सम्पत्तियों को उपार्जन करने में समर्थ हों ॥१२॥
Connotation: - हमारे बाह्य और आन्तरिक शत्रु हैं। उनको सर्वदा दबा रखने के उपाय सोचें और अपनी बुद्धि और कर्मों को ईश्वर की प्रार्थना से शुद्ध और तेज बनावें ॥१२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - येन धनेन ज्ञानेन वा। पृतनासु=संग्रामेषु व्यावहारिकेषु। शर्धतः=बलं कुर्वतः। अर्यः=अरीन्। आदिशः=आदेशान् गुप्तविचारांश्च तरन्तो वयम्। वंसाम=हिंसाम। तद् देहि। तदर्थं च। हे शचीवसो=शच्या प्रज्ञया कर्मणां वा वासयितः ! स त्वम्। नोऽस्मान्। प्रयसा=अन्नेन। वर्ध=वर्धय। पुनः। वसुविदः=वसूनां लम्भिकाः। धियः=कर्माणि च। जिन्व=प्रीणय ॥१२॥