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इन्द्र॒मिद्विम॑हीनां॒ मेधे॑ वृणीत॒ मर्त्य॑: । इन्द्रं॑ सनि॒ष्युरू॒तये॑ ॥

English Transliteration

indram id vimahīnām medhe vṛṇīta martyaḥ | indraṁ saniṣyur ūtaye ||

Pad Path

इन्द्र॑म् । इत् । विऽम॑हीनाम् । मेधे॑ । वृ॒णी॒त॒ । मर्त्यः॑ । इन्द्र॑म् । स॒नि॒ष्युः । ऊ॒तये॑ ॥ ८.६.४४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:44 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:17» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:44


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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्र ही उपास्य है, यह इससे शिक्षा देते हैं।

Word-Meaning: - (मर्त्यः) मरणधर्मा मनुष्य=सर्वजनता (विमहीना१म्) सूर्य्य, अग्नि, चन्द्र, नक्षत्र आदि विशेष देवों में (इन्द्रम्+इत्) इन्द्र को ही (मेधे) यज्ञ, शुभकर्म और पूजापाठ आदि अवसर पर (वृणीत) चुनें और उनको पूजें, अन्य देवों को नहीं। तथा (सनिष्युः) ज्ञानादि धनाभिलाषी विशेषज्ञ मनुष्य भी (ऊतये) अपनी-२ रक्षार्थ (इन्द्रम्) इन्द्र को ही चुनें ॥४४॥
Connotation: - अज्ञानवश भी मनुष्य अन्य देवों की पूजा न करें, सबके आत्मा परमात्मा की ही उपासना करें, यह आज्ञा ईश्वर देता है ॥४४॥
Footnote: १−विमही=क्या सूर्य्यादि देवों के समान ही परमात्मा है ? जो देववर्ग में ही इसकी गणना की गई है ? नहीं, सूर्य्यादि देव अचेतन हैं, परमात्मा चेतनमात्र है। वेद के अनुसार पदार्थमात्र ही देव हैं, इस हेतु वर्गीकरण उतना अनुचित नहीं। तथापि परमात्मदेव इन्द्र भगवान् सबसे पृथक् हैं। इससे प्रधानतया यह शिक्षा दी गई है कि सब कोई केवल ईश्वर की ही पूजा करें, अन्य देवों की कदापि नहीं ॥४४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विमहीनाम्) विशेष महान् पुरुषों के (मेधे) यज्ञ में (मर्त्यः) मनुष्य (इन्द्रम्, इत्) परमात्मा का ही (वृणीत) वरण करें (सनिष्युः) धन चाहनेवाला (ऊतये) रक्षा के लिये (इन्द्रम्) परमात्मा ही की उपासना करे ॥४४॥
Connotation: - इस मन्त्र में यह उपदेश किया है कि पुरुष बड़े-बड़े यज्ञों में परमात्मा को ही वरण करें अर्थात् उसी के निमित्त यज्ञ करें और ऐश्वर्य्य की कामनावाला पुरुष उसी की उपासना में तत्पर रहे, वह अवश्य कृतकार्य्य होगा ॥४४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्र एवोपास्य इत्यनया शिक्षते।

Word-Meaning: - मर्त्यः=मनुष्यो मरणधर्म्मा सर्वा जनता। विमहीनाम्=विशेषेण महतां देवानां सूर्य्यादीनां मध्ये। मेधे=यज्ञे शुभकर्माणि। इन्द्रमिद्=इन्द्रमेव। वृणीत=उपासीत। अपि च। सनिष्युः=ज्ञानादिधनकामो विशेषज्ञो मनुष्यः। ऊतये=स्वरक्षणाय। इन्द्रमेव वृणीत ॥४४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विमहीनाम्) विशेषेण महतां (मेधे) यज्ञे (मर्त्यः) मनुष्यः (इन्द्रम्, इत्) परमात्मानमेव (वृणीत) भजेत (सनिष्युः) धनकामश्च (ऊतये) रक्षायै (इन्द्रम्) परमात्मानमेव वृणीत ॥४४॥