ऋषि॒र्हि पू॑र्व॒जा अस्येक॒ ईशा॑न॒ ओज॑सा । इन्द्र॑ चोष्कू॒यसे॒ वसु॑ ॥
English Transliteration
ṛṣir hi pūrvajā asy eka īśāna ojasā | indra coṣkūyase vasu ||
Pad Path
ऋषिः॑ । हि । पू॒र्व॒ऽजाः । असि॑ । एकः॑ । ईशा॑नः । ओज॑सा । इन्द्र॑ । चो॒ष्कू॒यसे॑ । वसु॑ ॥ ८.६.४१
Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:41
| Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:17» Mantra:1
| Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:41
Reads times
SHIV SHANKAR SHARMA
ईश्वर की महिमा दिखलाते हैं।
Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र तू (ऋषिः) सर्वदृष्टा और सर्वत्र विद्यमान है। तू (हि) निश्चय (पूर्वजाः) सबमें अग्रज अथवा पूर्व को उत्पन्न करनेवाला है और (ओजसा) अपने महाबल से (एकः) अकेला ही तू (अस्य) इस जगत् का (ईशानः) ईश्वर=स्वामी है। हे इन्द्र ! वह तू (वसु) सर्व प्रकार के धन (चोष्कूयसे) धारण करता है ॥४१॥
Connotation: - सृष्टि की आदि में उसी ने मनुष्यों को वेदविद्या दी, अतः वह ऋषि और सर्वशासक होने से ईशान कहलाता है, निश्चय वही सर्वसुखप्रदाता है, अतः वही सेव्य है ॥४१॥
Reads times
ARYAMUNI
Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! आप (पूर्वजाः) सबसे पूर्व होनेवाले और (ऋषिः) सूक्ष्मद्रष्टा हैं (ओजसा) अपने पराक्रम से (एकः, ईशानः) केवल अद्वितीय शासक हो रहे हैं (वसु) सबको धनादि ऐश्वर्य्य (चोष्कूयसे) अतिशयेन दे रहे हैं ॥४१॥
Connotation: - हे सबके पालक तथा रक्षक प्रभो ! आप सबसे प्रथम हैं, सूक्ष्मद्रष्टा और अपने अद्वितीय पराक्रम से सबका शासन कर रहे हैं और कर्मानुसार यथाभाग सबको धनादि ऐश्वर्य्य प्रदान करते हैं। कृपा करके उपासक की विशेषतया रक्षा करें, ताकि वह आपकी उपासना में निरन्तर तत्पर रहे ॥४१॥
Reads times
SHIV SHANKAR SHARMA
ईशमहिमानं दर्शयति।
Word-Meaning: - हे इन्द्र ! त्वम्। ऋषिः=सर्वद्रष्टा सर्वगश्चासि। हि=निश्चयेन। पूर्वजाः=सर्वेषामग्रजाः। यद्वा। पूर्वान् जनयतीति पूर्वजाः। अन्तर्भावितण्यर्थः। सर्वेभ्यो यः पूर्वः पुरुषोऽस्ति तमपि स एव जनयति। स एव आदिगुरुरित्यर्थः। पुनः। ओजसा=बलेन। एकोऽपि= असहायोऽपि। अस्य=जगतः। ईशानः=ईश्वरः=स्वामी। हे इन्द्र ! स त्वम्। वसु=सर्वधनम्। चोष्कूयसे=बिभर्षि ॥४१॥
Reads times
ARYAMUNI
Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! त्वम् (पूर्वजाः) सर्वेभ्यः पूर्वः (ऋषिः) सूक्ष्मद्रष्टा चासि (ओजसा) स्वपराक्रमेण (एकः, ईशानः) केवलः शासकः (वसु) धनाद्यैश्वर्यं च (चोष्कूयसे) अतिशयेन ददासि ॥४१॥