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सम॑स्य म॒न्यवे॒ विशो॒ विश्वा॑ नमन्त कृ॒ष्टय॑: । स॒मु॒द्राये॑व॒ सिन्ध॑वः ॥

English Transliteration

sam asya manyave viśo viśvā namanta kṛṣṭayaḥ | samudrāyeva sindhavaḥ ||

Pad Path

सम् । अ॒स्य॒ । म॒न्यवे॑ । विशः॑ । विश्वाः॑ । न॒म॒न्त॒ । कृ॒ष्टयः॑ । स॒मु॒द्राय॑ऽइव । सिन्ध॑वः ॥ ८.६.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:9» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

सब उसके अधीन हैं, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (अस्य) इस इन्द्रवाच्य परमात्मा के (मन्यवे) क्रोध उत्पन्न होने पर (विश्वाः) सब ही (विशः) नाना देशनिवासी (कृष्टयः) प्रजाएँ−मनुष्य, जीव तथा सूर्य्यादि देवगण (सम्+नमन्त) सम्यक् स्वयमेव नम्रीभूत हो जाती हैं। इसमें दृष्टान्त कहते हैं−(समुद्राय+इव+सिन्धवः) जैसे समुद्र के निकट सब नदियाँ नम्रीभूत होती हैं ॥४॥
Connotation: - स्थावर और जंगम सब ही पदार्थ ईश्वरीय नियमों को विचलित नहीं कर सकते। तदधीन होकर निज-२ व्यापार करते हैं, यह जानना चाहिये ॥४॥
Footnote: वेदवाक्य में अतिशय विलक्षणता रहती है। ईश्वरीय क्रोध क्या है। निःसन्देह मनुष्य को विदित नहीं होता कि ईश्वर की ओर से मुझ पर कौनसा दण्ड आ गिरा है। मनुष्य को उसने अपनी वाटिका का रक्षक बनाया तथापि यह अज्ञानवश इस अधिकार को नहीं जानता, प्रमाद करता है। अतः नाना रोग, दुर्भिक्ष, अनावृष्टि, आकस्मिक मानसिक व्यथा, सम्पत्तिहीनता, व्यापारहानि, उद्योगनिष्फलता आदि उपद्रव ईश्वरीय क्रोध हैं। इससे बचने के लिये उसकी आज्ञा का पालन करना उचित है। अपने आत्मा को शुद्ध पवित्र बनाकर उसके आदेश से विरुद्ध न चलना, प्रतिदिन सायं और प्रातःकाल अच्छे होने के लिये ईश्वर से आशीर्वाद माँगना एवं सदा सत्य व्यवहार में रत रहना इत्यादि साधनों से आत्मा और परमात्मा दोनों प्रसन्न रहते हैं। जगत् की क्षणिकता और आयु की स्वल्पता देख परद्रोह की चिन्ता कदापि नहीं करनी चाहिये। वेद में जो उपमा आती है, उसका भी गूढ़ आशय रहता है। समुद्र का नदी से क्या सम्बन्ध है, यदि इस पर विचार किया जाय तो अनेक रहस्य प्रतीत होते हैं। प्रथम समुद्र के अधीन ही नदियों की सत्ता है। समुद्र से मेघ और मेघ से नदी बनती है। पृथिवी पर समुद्र कहाँ से आया, किस प्रकार यह जलराशि एकत्रित हुआ और पुनः उसमें वाष्प होने की शक्ति कहाँ से आई इत्यादि चिन्तनीय विषय हैं। समुद्र के निकट नदी समूह अतिक्षुद्र हैं। पृथिवी की इस प्रकार बनावट है कि सब ही नदियाँ परस्पर मिलकर अथवा एक-एक पृथक्-२ समुद्र में ही जाकर विश्राम लेती हैं। जिस वर्ष किसी प्राकृत कारणवश समुद्र से वाष्प ऊपर बहुत न्यून उठता और वायु के द्वारा मेघों का संचलन देशों में स्वल्प होता है, तब वृष्टि कम होने से नदियों की भी दुर्दशा होती है। इत्यादि बहु विषय प्रत्येक दृष्टान्त के साथ विचारणीय हैं ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य, मन्यवे) इस परमात्मा के प्रभाव के लिये (विश्वाः) सब (विशः) चेष्टा करती हुईं (कृष्टयः) प्रजाएँ (समुद्राय, सिन्धवः, इव) जैसे समुद्र के लिये नदियें इसी प्रकार (संनमन्त) स्वयं ही संनत होती हैं ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि जिस प्रकार नदियें स्वाभाविक ही समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं, इसी प्रकार परमात्मा के प्रभाव से प्रवाहित हुई सब प्रजाएँ उसकी ओर आकर्षित हो रही हैं, क्योंकि संतप्त प्रजाओं को शान्तिप्रदान करने का आधार एकमात्र परमात्मा ही है, अन्य नहीं ॥४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

सर्वे तस्याधीनाः सन्तीति दर्शयति।

Word-Meaning: - अस्येन्द्रस्य। मन्यवे=क्रोधाय। विश्वाः=सर्वाः। विशः=नाना देशान् विशन्त्यो निखिलदेशनिवासिन्यः। कृष्टयः= प्रजाः=सर्वे मनुष्याः सर्वे जीवा देवादयश्च। सम् नमन्त=सम्यक् स्वत एव नमन्ति। नमतेः कर्मकर्तरि लकारः। अत्र दृष्टान्तः−समुद्रायेव सिन्धवः=यथा समुद्रं प्रतिस्यन्दनशीला नद्यः स्वयमेव नमन्ते तद्वत् ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य, मन्यवे) अस्य परमात्मनः प्रभावाय (विश्वाः) सर्वाः (विशः) विशन्त्यः (कृष्टयः) प्रजाः (समुद्राय, सिन्धवः, इव) समुद्राय यथा नद्यस्तथा (संनमन्त) स्वत एव संनता भवन्ति ॥४॥