Go To Mantra

तं त्वा॑ ह॒विष्म॑ती॒र्विश॒ उप॑ ब्रुवत ऊ॒तये॑ । उ॒रु॒ज्रय॑स॒मिन्दु॑भिः ॥

English Transliteration

taṁ tvā haviṣmatīr viśa upa bruvata ūtaye | urujrayasam indubhiḥ ||

Pad Path

तम् । त्वा॒ । ह॒विष्म॑तीः । विशः॑ । उप॑ । ब्रु॒व॒ते॒ । ऊ॒तये॑ । उ॒रु॒ऽज्रय॑सम् । इन्दु॑ऽभिः ॥ ८.६.२७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:27 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:27


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसकी महिमा दिखलाई जाती है।

Word-Meaning: - (हविष्मतीः१) प्रशस्त पूजासामग्रीसंयुक्त (विशः) समस्त मनुष्य (इन्दुभिः) निज परमैश्वर्य्यों से (उरुज्रयसम्) अति विस्तीर्ण और अनन्त (तम्+त्वा) उस तुझको (ऊतये) निज-२ रक्षा के लिये (उपब्रुवते) मन से तेरे निकट पहुँचकर गाते हैं ॥२७॥
Connotation: - जिसके ऐश्वर्य्य से ये पृथिव्यादि लोक हैं, जिसके चलाने से ये चलते हैं, उसी को विद्वान् पूजते हैं। तुम भी उसी की स्तुति करो, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥२७॥
Footnote: हविष्मती−१−वेदों में हविष् शब्द परम श्रद्धा, भक्ति, विश्वास आदि का द्योतक होता है, परम श्रद्धायुक्त पुरुष को हविष्मान् कहते हैं। “कस्मै देवाय हविषा विधेम” इत्यादि ऋचा में हविष् शब्द का प्रयोग देखिये ॥२७॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (उरुज्रयसम्) अतिवेगवाले (तं, त्वा) उन आपको (हविष्मतीः, विशः) सेवायोग्य पदार्थयुक्त प्रजाएँ (इन्दुभिः) दिव्यपदार्थों को लिये हुए (ऊतये) अपनी रक्षा के लिये (उपब्रुवते) स्तुति कर रही हैं ॥२७॥
Connotation: - हे सर्वरक्षक तथा सब प्रजाओं के स्वामी परमात्मन् ! आप हमारी सब ओर से रक्षा करें, हम सब प्रजाजन दिव्य पदार्थों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं। हे प्रभो ! हमें शक्ति दें कि हम निरन्तर वेदविहित मार्ग में चलकर अपना जीवन सफल करें ॥२७॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तस्य महिमा प्रदर्श्यते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! हविष्मतीः=प्रशस्तानि हवींषि पूजासाधनानि सन्त्यासामिति हविष्मत्यः। विशः=जनाः। इन्दुभिः=परमैश्वर्य्यैः। उरुज्रयसम्=विस्तीर्णव्याप्तिनम्। तं सुप्रसिद्धम्। त्वा=त्वाम्। ऊतये=रक्षणाय। उपब्रुवते=मनसा त्वामुपगम्य स्तुवन्ति ॥२७॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (उरुज्रयसम्) बहुवेगम् (तं, त्वा) तं त्वाम् (हविष्मतीः, विशः) उपायनयुक्ताः प्रजाः (इन्दुभिः) दिव्यपदार्थैर्वर्तमानाः (ऊतये) स्वरक्षायै (उपब्रुवते) उपस्तुवन्ति ॥२७॥