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इ॒मास्त॑ इन्द्र॒ पृश्न॑यो घृ॒तं दु॑हत आ॒शिर॑म् । ए॒नामृ॒तस्य॑ पि॒प्युषी॑: ॥

English Transliteration

imās ta indra pṛśnayo ghṛtaṁ duhata āśiram | enām ṛtasya pipyuṣīḥ ||

Pad Path

इ॒माः । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । पृश्न॑यः । घृ॒तम् । दु॒ह॒ते॒ । आ॒ऽशिर॑म् । ए॒नाम् । ऋ॒तस्य॑ । पि॒प्युषीः॑ ॥ ८.६.१९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:19 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:19


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SHIV SHANKAR SHARMA

समस्त जगत् सुखकारी है, यह इससे शिक्षा देते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (इमाः) परितः दृश्यमान के (पृश्नयः) नाना वर्णों के पदार्थरूप गाएँ (ते) तेरी कृपा से (घृतम्) क्षरणशील=बहनेवाली वस्तु और (एनाम्) इन (आशिरम्) नाना द्रव्यमिश्रित वस्तुओं को दुग्धवत् (दुहते) देते हैं। वे पदार्थ कैसे हैं−(ऋतस्य) प्राकृतनियम के (पिप्युषीः) पोषण करनेवाले हैं ॥१९॥
Connotation: - यह ईश्वरीय सृष्टि बहुत ही सुखमयी है। कैसे-२ पदार्थ यहाँ सुख प्रकट कर रहे हैं। गौ का दूध कैसा एक उत्तम पदार्थ है। वह अपने बच्चे को पिलाकर पुनः मनुष्य को दूध देती है, परन्तु दुग्धवत् इस पृथिवी पर सहस्रशः पदार्थ हैं। आम्र कैसा स्वादु, नारिकेल कैसा पोषक वस्तु, इक्षु एक अद्भुत पदार्थ है। गोधूम और धान्य आदि सब ही ईश्वर की परम महिमा दिखलाते हैं ॥१९॥
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ARYAMUNI

अब परमात्मा के नियम से वर्षा का होना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (ते) आपसे उत्पादित (इमाः, पृश्नयः) ये सूर्य की रश्मि (एनाम्, आशिरम्, घृतम्) इस पृथिव्यादिलोकाश्रित जल को (दुहते) कर्षण करती हैं, जो रश्मि (ऋतस्य) यज्ञ को (पिप्युषीः) बढ़ानेवाली हैं ॥१९॥
Connotation: - हे सर्वरक्षक प्रभो ! आपसे उत्पादित सूर्य्यरश्मि इस पृथिवी में स्थित जल को अपनी आकर्षणशक्ति से ऊपर ले जाती, पुनः मेघमण्डल बनकर वर्षा होती और वर्षा से अन्न तथा अन्न से प्राणियों की रक्षा होती है ॥१९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

समस्ता सृष्टिः सुखयित्री वर्तत इत्यनया शिक्षते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! इमाः=परितो दृश्यमानाः। पृश्नयः=नानावर्णाः पदार्था गाव इव। ते=तव कृपया। घृतम्=क्षरणशीलं वस्तु। अपि च। एनाम्=इमम्। आशिरम्=विविधद्रव्यमिश्रितं वस्तु दुग्धमिव। दुहते=दुहन्ति=ददतीत्यर्थः। कीदृश्यः पृश्नयः− ऋतस्य=प्राकृतनियमस्य। पिप्युषीः=पोषयित्र्यः ॥१९॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मनियमेनैव वर्षणमित्युच्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (ते) त्वयोत्पादिताः (इमाः, पृश्नयः) सूर्यरश्मयः (एनाम्, आशिरम्, घृतम्) इदमाश्रितं जलम् (दुहते) कर्षन्ति याः (ऋतस्य) यज्ञस्य (पिप्युषीः) वर्द्धयित्र्यः ॥१९॥