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य इ॑न्द्र॒ यत॑यस्त्वा॒ भृग॑वो॒ ये च॑ तुष्टु॒वुः । ममेदु॑ग्र श्रुधी॒ हव॑म् ॥

English Transliteration

ya indra yatayas tvā bhṛgavo ye ca tuṣṭuvuḥ | mamed ugra śrudhī havam ||

Pad Path

ये । इ॒न्द्र॒ । यत॑यः । त्वा॒ । भृग॑वः । ये । च॒ । तु॒स्तु॒वुः । मम॑ । इत् । उ॒ग्र॒ । स्रु॒धि॒ । हव॑म् ॥ ८.६.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:18 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! परमात्मदेव (ये) जो ये प्रसिद्ध (यतयः) योगिगण ध्यानावस्थित होकर (त्वा) तेरी (तुष्टुवुः) स्तुति करते हैं। (ये+च) और जो (भृगवः) तपस्विगण (तुष्टुवुः) स्तुति करते हैं, अपनी-२ तपस्या से तेरे गुणों को दिखलाते हैं। उन दोनों के मध्य (उग्र) हे उग्र देव हे महान् देव ! (मम+इत्) मेरे भी (हवम्) आह्वान=निमन्त्रण को (श्रुधि) सुन। यद्यपि न मैं योगी, यति और न मैं तपस्वी किन्तु आपकी स्तुति किया करता हूँ। इतनी ही मेरी योग्यता है। अतः हे महादेव मुझ क्षुद्र पुरुष का भी स्तोत्र सुना कर ॥१८॥
Connotation: - स्व-स्व भाषा द्वारा सब कोई परमदेवता की प्रार्थना करें। यतिगण मन को रोककर स्तुति करते हैं। तपस्वी स्वतप से उसकी विभूति को प्रकाशित करते हैं। विद्वान् उसकी कीर्ति गाते हैं। इसी प्रकार इतरजन भी स्व-स्व भाषा से उसको गावें ॥१८॥
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ARYAMUNI

अब जिज्ञासु की प्रार्थना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (ये, यतयः) जो चित्त का विरोध करनेवाले विद्वान् तथा (ये च, भृगवः) जो अज्ञान का मार्जन करनेवाले विद्वान् हैं (त्वा, तुष्टुवुः) वे आपकी स्तुति करते हैं (उग्र) हे ओजस्विन् ! (ममेत्) मेरी निश्चय (हवं) स्तुति को आप (श्रुधी) सुनें ॥१८॥
Connotation: - हे सर्वरक्षक तथा सर्वपालक परमात्मन् ! चित्तवृत्तिनिरोध तथा अज्ञान के नाशक विद्वज्जन आपकी उपासना तथा स्तुति करने में सदैव तत्पर रहते हैं, जिससे आप उनको उन्नत करते हैं। हे परमेश्वर ! मुझ जिज्ञासु की प्रार्थना भी स्वीकार करें अर्थात् मुझको शक्ति दें कि मैं भी आपकी उपासना में सदैव प्रवृत्त रहकर अपना जीवन सफल करूँ ॥१८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरिन्द्रः प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! ये=प्रसिद्धाः। यतयः=योगिनो मनसा। त्वा=त्वाम्। तुष्टुवुः=सदा स्तुवन्ति। ये च भृगवस्तपस्विनो जनाः स्वतपसा। त्वां स्तुवन्ति=तव गुणग्रामान् स्वतपसा दर्शयन्ति। तेषामुभयेषां मध्ये। हे उग्र=दण्डधर भयङ्करदेव ! ममेद्=ममापि। अप्यर्थे इत्। हवम्=आह्वानं निमन्त्रणम्। श्रुधि=शृणु ॥१८॥
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ARYAMUNI

अथ जिज्ञासुप्रार्थना कथ्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (ये, यतयः) ये यतचेतसः (ये, च, भृगवः) ये च अज्ञानभर्जका विद्वांसः (त्वां, तुष्टुवुः) त्वां स्तुवन्ति (उग्र) हे ओजस्विन् ! (ममेत्) ममैव तेषां मध्ये (हवं) स्तोत्रम् (श्रुधी) शृणु ॥१८॥