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य इ॒मे रोद॑सी म॒ही स॑मी॒ची स॒मज॑ग्रभीत् । तमो॑भिरिन्द्र॒ तं गु॑हः ॥

English Transliteration

ya ime rodasī mahī samīcī samajagrabhīt | tamobhir indra taṁ guhaḥ ||

Pad Path

यः । इ॒मे इति॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । म॒ही इति॑ । स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची । स॒म्ऽअज॑ग्रभीत् । तमः॑ऽभिः । इ॒न्द्र॒ । तम् । गु॒हः॒ ॥ ८.६.१७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:17


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SHIV SHANKAR SHARMA

विघ्नविनाशार्थ पुनः परमात्मा की प्रार्थना करते हैं।

Word-Meaning: - (यः) जो अवर्षण, अतिवर्षण, दुर्भिक्ष आदि नाना विघ्न (इमे) इन (मही) महान् विस्तीर्ण और (समीची) परस्पर संमिलित (रोदसी) द्यावापृथिवी को अर्थात् सम्पूर्ण भुवन को (समजग्रभीत्) दृढ़ता से पकड़े हुए विद्यमान है (तम्) उस नाना विघ्न को (इन्द्र) हे परमदेव ! (तमोभिः) अन्धकारों से (गुहः) छिपा दो अर्थात् सदा के लिये उन विघ्नों को अन्धकार में छिपा दो ॥१७॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! संसार में नाना विघ्नों और विविध दुःखों को देखकर भी उनके निवारण के लिये सर्व क्लेशहर ईश्वर का आश्रय क्यों न लेते ॥१७॥
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ARYAMUNI

अब लोकलोकान्तरविषयक परमात्मा का महत्त्व वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यः) जो सत्व-रज-तम का समूह (समीची) परस्पर संबद्ध (इमे, मही, रोदसी) इस महान् पृथिवी और द्युलोक को (समजग्रभीत्) रोके हुए है, उसको (तम्) आप प्रलयावस्था में (तमोभिः) तमःप्रधान प्रकृति से (गुहः) गूढ रखते हैं ॥१७॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा का महत्त्व वर्णन किया गया है कि हे परमात्मन् ! सत्त्व, रज तथा तम का समूह जो प्रकृति, उसका कार्य्य जो यह पृथिवी और द्युलोक तथा अन्य लोक-लोकान्तरों को आप अपनी बन्धनरूप शक्ति से परस्पर एक दूसरे को थामे हुए हैं, जिससे आपकी अचिन्त्यशक्ति का बोध होता है। फिर इन सबको प्रलयकाल में सूक्ष्मांशों से गूढ़ रखते हैं अर्थात् ये सब ब्रह्माण्डादि कार्य्यजात सूक्ष्मावस्था में आप ही के आश्रित रहते हैं, यह आपकी महान् महिमा है ॥१७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

विघ्नविशाय पुनरपि परमात्मा प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! यः=खलु वृत्रादिर्विघ्नः। इमे=प्रत्यक्षतो दृश्यमाने। मही=मह्यौ=महत्यौ=अतिविस्तीर्णे। समीची=समीच्यौ=परस्परं संगते। रोदसी=द्यावापृथिव्यौ। समजग्रभीत्=समीचीनतया गृहीतवानस्ति। तं विघ्नम्। तमोभिः=अन्धकारैः। गुहः=संवृतं निबद्धं कुरु=विनाशयेत्यर्थः ॥१७॥
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ARYAMUNI

अथ लोकलोकान्तरविषयकं परमात्ममहत्त्वं कथ्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यः) यः सत्वरजस्तमसां समवायः (समीची) संगतौ (इमे, मही, रोदसी) इमौ महान्तौ द्युलोकपृथिवीलोकौ (समजग्रभीत्) अवस्तम्भितवान् (तम्) तं समवायम् (तमोभिः) तमःप्रधानेन (गुहः) गूढं करोषि ॥१७॥