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जना॑सो वृ॒क्तब॑र्हिषो ह॒विष्म॑न्तो अरं॒कृत॑: । यु॒वां ह॑वन्ते अश्विना ॥

English Transliteration

janāso vṛktabarhiṣo haviṣmanto araṁkṛtaḥ | yuvāṁ havante aśvinā ||

Pad Path

जना॑सः । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । ह॒विष्म॑न्तः । अ॒र॒म्ऽकृतः॑ । यु॒वाम् । ह॒व॒न्ते॒ । अ॒श्वि॒ना॒ ॥ ८.५.१७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:5» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:17


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SHIV SHANKAR SHARMA

न्याय करने के लिये राजवर्ग को बुलाना चाहिये, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे अश्वादिशक्तियुक्त राजन् और सभाध्यक्ष ! (वृक्तबर्हिषः) कामक्रोधादिशत्रुच्छेत्ता अतएव (हविष्मन्तः) उपासनावान् और (अरंकृतः) बहुत काम करनेवाले परमोद्योगी (जनासः) मनुष्य (युवाम्) आप ही दोनों को शुभकर्मों में (हवन्ते) बुलाते हैं। अतः आप सदा प्रजाओं की रक्षा में तत्पर होवें ॥१७॥
Connotation: - वृक्तबर्हिष् यह नाम ऋत्विक् का भी है, जो कामक्रोधादिकों से रहित हैं, वे वृक्त हैं, वे ही निष्कामी हविष्मान् और अरंकृत अर्थात् परमोद्योगी हैं, इस प्रकार के मनुष्यों का अधिकार है कि वे राजपुरुषों को अपने गृह पर बुलाकर सदुपदेश देवें और अभियोग का निर्णय करावें ॥१७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे अत्यन्त पराक्रमवाले ! (वृक्तबर्हिषः) आपके लिये पृथक् आसन सज्जित करके (हविष्मन्तः) आपके सिद्ध भाग को लिये हुए (अरंकृतः) संस्कृत शरीर बनकर (जनासः) सब मनुष्य (युवां, हवन्ते) आपका आह्वान करते हैं ॥१७॥
Connotation: - हे ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! आप पराक्रमी होने से सबको पराक्रमसम्पन्न बनानेवाले हैं, इसलिये आपको उत्तमासन सुसज्जित करके उत्तम वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर सिद्ध किया हुआ सोमरस लिये हुए सब पुरुष आपके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सो आप उसका पान करके हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर उत्तम उपदेशों द्वारा हमें पराक्रमी बनावें ॥१७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

न्यायार्थं राजवर्गमाह्वातव्य इति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे अश्विना=अश्विनौ=राजानौ। वृक्तबर्हिषः=वृक्ताश्छिन्ना बर्हिषो बृहन्तो महान्तः कामक्रोधादिशत्रवो यैस्ते निवृत्तरागादिदोषा इत्यर्थः। अतएव हविष्मन्तः=उपासनावन्तः। अतः=अरंकृतः=अरं पर्य्याप्तं कुर्वन्तीति अरंकृतः=परमोद्योगिनः। जनासः=पुरुषाः। युवामेव। हवन्ते=आह्वयन्ति ॥१७॥
Connotation: -
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे अत्यन्तपराक्रमिणः ! (वृक्तबर्हिषः) पृथक्त्यक्तासनाः (हविष्मन्तः) त्वदीयभागवन्तः (अरंकृतः) संस्कृताः सन्तः (जनासः) सर्वे जनाः (युवां, हवन्ते) युवां आह्वयन्ति ॥१७॥