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यस्मा॒ अरा॑सत॒ क्षयं॑ जी॒वातुं॑ च॒ प्रचे॑तसः । मनो॒र्विश्व॑स्य॒ घेदि॒म आ॑दि॒त्या रा॒य ई॑शतेऽने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

English Transliteration

yasmā arāsata kṣayaṁ jīvātuṁ ca pracetasaḥ | manor viśvasya ghed ima ādityā rāya īśate nehaso va ūtayaḥ suūtayo va ūtayaḥ ||

Pad Path

यस्मै॑ । अरा॑सत । क्षय॑म् । जी॒वातु॑म् । च॒ । प्रऽचे॑तसः । मनोः॑ । विश्व॑स्य । घ॒ । इत् । इ॒मे । आ॒दि॒त्याः । रा॒यः । ई॒श॒ते॒ । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥ ८.४७.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:47» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

इस सूक्त में श्रेष्ठ नरों की स्तुति की जाती है।

Word-Meaning: - (वरुण) हे वरणीय राजप्रतिनिधे (मित्र) हे ब्राह्मणप्रतिनिधे हे अन्यान्य श्रेष्ठ मानवगण ! (महताम्+वः) आप लोग बहुत बड़े हैं और (दाशुषे) सज्जन, न्यायी परोपकारी जनों के लिये आप लोगों का (अवः) रक्षण भी (महि) महान् है (आदित्याः) हे सभाध्यक्ष पुरुषो ! (यम्) जिस सज्जन को (द्रुहः) द्रोहकारी दुष्ट से बचाकर (अभि+रक्षथ) आप सब प्रकार रक्षा करते हैं (ईम्) निश्चय उसको पाप क्लेश और उपद्रव आदि (न+नशत्) प्राप्त नहीं होता, क्योंकि (वः+ऊतयः) आप लोगों की सहायता, रक्षा और निरीक्षण (अनेहसः) निष्पाप, निष्कारण और हिंसारहित है (वः+ऊतयः+सु+ऊतयः) आपकी सहायता अच्छी सहायता है। (वः+ऊतयः) आपकी रक्षा प्रशंसनीय है ॥१॥
Connotation: - अधिलोकार्थ में वरुण, मित्र, अर्य्यमा, आदित्य आदि शब्द लोकवाचक होते हैं। यद्यपि सम्पूर्ण वेद देवता स्तुतिपरक ही प्रतीत होते हैं, तथापि इनकी योजना अनेक प्रकार से होती है। देवता शब्द भी वेद में सर्ववाचक है, क्योंकि इषु देवता, धनुष देवता, ज्या देवता, अश्व देवता, मण्डूक देवता, वनस्पति यूप देवता आदि शतशः प्रयोग उस भाव को दिखला रहे हैं। सम्पूर्ण ऋचा का आशय यह है कि मनुष्य के प्रत्येक वर्ग के मुख्य-२ पुरुष जो राष्ट्र-सभासद् हों और निरपेक्ष और निःस्वार्थ भाव से मनुष्य जाति की हित-चिन्ता में सदा लगे रहें और सर्वोत्तम कार्य करके अपने प्रतिवासियों ग्रामीणों और देशवासियों को विशेष लाभ पहुँचाते हों, उन्हें सदा पारितोषिक दान देना चाहिये और देश में पापों का उदय न हो, उसका सदा उद्योग करते रहना चाहिये ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

श्रेष्ठनरा अत्र स्तूयन्ते।

Word-Meaning: - हे वरुण=वरणीय राजप्रतिनिधे ! हे मित्र=ब्राह्मणप्रतिनिधे। हे अन्य श्रेष्ठमानवाः ! महताम्। वो युष्माकम्। दाशुषे=दाश्वांसं जनं प्रति। अवः=रक्षणम्। महि=महत्। तथा च हे आदित्याः=सभाध्यक्षाः ! अदितेः सभायाः। अध्यक्षा इत्यादित्याः। यं पुरुषम्। यूयम्। द्रुहः=द्रोहकारिणः सकाशात्। अभिरक्ष च। ईम्=एनम्। अघम्। पापम्। न नशत्=न प्राप्नोति यतो यो युष्माकम् ऊतयो रक्षणानि। अनेहसः=अपापानि अनुपद्रवाणि। ऊतयो रक्षणानि। सु ऊतयः=शोभनरक्षणानि। वो युष्माकमूतयोऽनेहसः। द्विरुक्तिरादरार्था ॥१॥