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आ स ए॑तु॒ य ईव॒दाँ अदे॑वः पू॒र्तमा॑द॒दे । यथा॑ चि॒द्वशो॑ अ॒श्व्यः पृ॑थु॒श्रव॑सि कानी॒ते॒३॒॑ऽस्या व्युष्या॑द॒दे ॥

English Transliteration

ā sa etu ya īvad ām̐ adevaḥ pūrtam ādade | yathā cid vaśo aśvyaḥ pṛthuśravasi kānīte syā vyuṣy ādade ||

Pad Path

आ । सः । ए॒तु॒ । यः । ईवत् । आ । अदे॑वः । पू॒र्तम् । आ॒ऽद॒दे । यथा॑ । चि॒त् । वशः॑ । अ॒श्व्यः । पृ॒थु॒ऽश्रव॑सि । कानी॒ते । अ॒स्याः । वि॒ऽउषि॑ । आ॒ऽद॒दे ॥ ८.४६.२१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:46» Mantra:21 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:21


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - यहाँ इन्द्रप्रकरण है। किन्तु इस ऋचा में इन्द्र का वर्णन नहीं, अतः विदित होता है कि यह इन्द्रसम्बन्धी कार्य्य का वर्णन है। पृथिवी, जल, वायु, सूर्य आदि पदार्थ उसी इन्द्र के कार्य हैं। यहाँ दिखलाया जाता है कि इसके कार्यों से लोगों को सुख और दान मिल रहे हैं। यथा−(ये) जो वायु पृथिवी सूर्यादिक देव (अज्मभिः) स्व-स्व शक्तियों से हमारे उपद्रवों को (पातयन्ते) नीचे गिराते हैं और जो देव (एषाम्) इन (गिरीणाम्) मेघों के (स्नुभिः) प्रसरणशील जलों से हमारे दुर्भिक्षादिकों को दूर करते हैं, हे मनुष्यों ! उन देवों का (अध्वरे) संसाररूप यज्ञक्षेत्र में (यज्ञम्) दान और (सुम्नं) सुख हम पाते हैं, (महिस्वनीनाम्) जिनका ध्वनि महान् है, पुनः (तुविस्वनीनाम्) जिनका ध्वनि बहुत है ॥१८॥
Connotation: - ईश्वरीय प्रत्येक पदार्थ से लाभ हो रहा है, यह जान उसको धन्यवाद दो ॥१८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - अत्रेन्द्रप्रकरणमस्ति। अतस्तस्येन्द्रस्य कृपया। ये मरुत्प्रभृतयो देवाः। अज्मभिः=स्वस्वबलैः। तथा। एषां गिरीणां=पर्वतानाम्। स्नुभिः=प्रस्रवद्भिर्जलैश्च। अस्माकं दुर्भिक्षाद्युपद्रवान्। पातयन्ते=निपातयन्ति। तेषाम्। अध्वरे=संसारकार्याध्वरे। यज्ञं=दानम्। सुम्नं=सुखञ्च वयं प्राप्नुमः। कीदृशानाम्−महिस्वनीनाम्=महाध्वनीनाम्। पुनः। तुविस्वनीनाम्=बहुध्वनीनाम् ॥१८॥