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त्वाव॑तः पुरूवसो व॒यमि॑न्द्र प्रणेतः । स्मसि॑ स्थातर्हरीणाम् ॥

English Transliteration

tvāvataḥ purūvaso vayam indra praṇetaḥ | smasi sthātar harīṇām ||

Pad Path

त्वाऽव॑तः । पु॒रु॒व॒सो॒ इति॑ पुरुऽवसो । व॒यम् । इ॒न्द्र॒ । प्र॒ने॒त॒रिति॑ प्रऽनेतः । स्मसि॑ । स्था॒तः॒ । ह॒री॒णा॒म् ॥ ८.४६.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:46» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे विश्वम्भर इन्द्र ! मेरी प्रार्थना सुनकर (विश्वाः) समस्त (द्विषः) द्वेष करनेवाली प्रजाओं को (अपभिन्धि) इस संसार से उठा लो। और (बाधः) बाधाएँ डालनेवाले (मृधः) संग्रामों को भी (परि+जहि) निवारण करो। (तत्) तब इस संसार में (स्पार्हम्) स्पृहणीय (वसु) धन को (आभर) भर दो ॥४०॥
Connotation: - इस संसार में द्वेष करनेवाली मनुष्जाति या पशुप्रभृति जातियाँ कितनी हानि करनेवाली हैं, यह प्रत्यक्ष है और उन्मत्त स्वार्थी राजा लड़कर कितनी बाधाएँ सन्मार्ग में फैलाते हैं, यह भी प्रत्यक्ष ही है, अतः इन दोनों उपद्रवों से छूटने के लिये वारंवार वेद में प्रार्थना आती है और इन दोनों के अभाव होने से ही संसार में सुख पहुँचता है। इत्यादि ॥४०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे विश्वम्भर इन्द्र ! मम प्रार्थनां श्रुत्वा विश्वाः सर्वाः। द्विषः=द्वेष्टॄः प्रजाः। अपभिन्धि=दूरी कुरु। तथा बाधः=बाधयित्रीः। मृधः=संग्रामान्। परिजहि=परिहर। तत्=ततः। स्पार्हम्=स्पृहणीयम्। वसु=धनम्। जगति। आभर=पूरय ॥४०॥