यदा॒जिं यात्या॑जि॒कृदिन्द्र॑: स्वश्व॒युरुप॑ । र॒थीत॑मो र॒थीना॑म् ॥
English Transliteration
yad ājiṁ yāty ājikṛd indraḥ svaśvayur upa | rathītamo rathīnām ||
Pad Path
यत् । आ॒जिम् । याति॑ । आ॒जि॒ऽकृत् । इन्द्रः॑ । स्व॒श्व॒ऽयुः । उप॑ । र॒थिऽत॑मः । र॒थीना॑म् ॥ ८.४५.७
Rigveda » Mandal:8» Sukta:45» Mantra:7
| Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:43» Mantra:2
| Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:7
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - (वृत्रहा) निखिलविघ्नविनाशक (जातः) प्रसिद्ध आत्मा अर्थात् जो आत्मा विघ्नविनाश करने में प्रसिद्ध है, वह (बुन्दम्+आददे) निज सदाचार की रक्षा और अन्याय को रोकने के लिये सदा उपासना और कर्मरूप बाण को हाथ में रखता है और उसको लेकर (मातरम्) बुद्धिरूपा माता से (विपृच्छत्) पूछता है कि (के) कौन मेरे (उग्राः) भयङ्कर शत्रु हैं और (के+ह) कौन (शृण्विरे) प्रसिद्ध शत्रु सुने जाते हैं ॥४॥
Connotation: - जब उपासक ईश्वर की स्तुति प्रार्थना करता रहता है, तब उसका आत्मा शुद्ध पवित्र होकर बलिष्ठ हो जाता है। वह आत्मा अपने निकट पापों को कदापि आने नहीं देता है। उस अवस्था में वह वृत्रहा, नमुचि, सूदन आदि पदों से भूषित होता है और मानो अपनी रक्षा के लिये सदा अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहता है। उस समय मानो, यह बुद्धि से पूछता है मेरे कितने और कौन-२ शत्रु हैं इत्यादि इसका आशय है। इससे यह शिक्षा दी गई है कि आत्मा यदि तुम्हारा वास्तव में सखा है, तो उसका उद्धार करना ही परमधर्म है। वह केवल कर्म और उपासना से हो सकता है ॥४॥
Footnote: माता=इस प्रकरण में माता शब्द से बुद्धि का ग्रहण है, क्योंकि वही जीव को अच्छी सम्मति देती रहती है और सुमति ही आत्मा को पुष्ट और बलिष्ठ बनाती है, अतः माता कहलाती है, राजा पक्ष में सभा ही माता है इत्यादि अर्थ अनुसन्धेय हैं ॥४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - वृत्रहा=वृत्रान् विघ्नान् हन्तीति वृत्रहा। आत्मा। जातः=प्रसिद्धः। बुन्दमिषुमाददे=गृह्णाति। बुन्द इषुर्भवति। नि० ६।३२। इति। इषुमादाय। के उग्राः। के च। शृण्विरे वीर्य्येण विश्रुताः सन्तीति मातरं बुद्धिम्। विपृच्छत्=विपृच्छति ॥४॥