ए॒वारे॑ वृषभा सु॒तेऽसि॑न्व॒न्भूर्या॑वयः । श्व॒घ्नीव॑ नि॒वता॒ चर॑न् ॥
English Transliteration
evāre vṛṣabhā sute sinvan bhūry āvayaḥ | śvaghnīva nivatā caran ||
Pad Path
ए॒वारे॑ । वृ॒ष॒भ॒ । सु॒ते । असि॑न्वन् । भूरि॑ । आ॒व॒यः॒ । श्व॒घ्नीऽइ॑व । नि॒ऽवता॑ । चर॑न् ॥ ८.४५.३८
Rigveda » Mandal:8» Sukta:45» Mantra:38
| Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:49» Mantra:3
| Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:38
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे न्यायाधीश जगदीश ! (त्वावतः) आपके समान न्यायवान् से (अहम्) मैं सदा (हि) निःसन्देह (बिभय) डरता रहता हूँ। हे भगवन् ! जिस कारण आप (उग्रात्) पापियों के प्रति महा भयङ्कर हैं, (अभिप्रभङ्गिणः) चारों तरफ से दुष्टों को भग्न करनेवाले हैं, (दस्मात्) पापियों को दूर फेंकनेवाले हैं और (ऋतीसहः) निखिल विघ्नों को दृढ़ानेवाले हैं, अतः मैं डरता हूँ ॥३५॥
Connotation: - पूर्व में प्रार्थना की गई है कि अपराध होने पर भी आप हमको दण्ड न देवें। इसपर उपासक मन में कहता है कि हे ईश मैं जानकर अपराध न करूँगा। आपको मैं जानता हूँ, आप न्यायाधीश हैं। पापी आपके निकट नहीं रह सकता, अतः आपसे मैं सदा डरता हूँ, आपके नियम पर चलता हूँ, तथापि अपराध हो जाए, तो कृपा कर क्षमा करें ॥३५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे ईश ! त्वावतः=त्वत्सदृशात् न्यायाधीशात्। अहम्। सदा। हि=निश्चयेन। बिभय=बिभेमि। कीदृशात्। उग्रात्=भयङ्करात्। पुनः। अभिप्रभङ्गिणः=अभिप्रहर्त्तुः। पुनः। दस्मात्=पापानामुपक्षयितुः। पुनः। ऋतीसहः=सर्वान् उपद्रवान् अभिभवतः ॥३५॥