अपि॑बत्क॒द्रुव॑: सु॒तमिन्द्र॑: स॒हस्र॑बाह्वे । अत्रा॑देदिष्ट॒ पौंस्य॑म् ॥
English Transliteration
apibat kadruvaḥ sutam indraḥ sahasrabāhve | atrādediṣṭa pauṁsyam ||
Pad Path
अपि॑बत् । क॒द्रुवः॑ । सु॒तम् । इन्द्रः॑ । स॒हस्र॑ऽबाह्वे । अत्र॑ । अ॒दे॒दि॒ष्ट॒ । पौंस्य॑म् ॥ ८.४५.२६
Rigveda » Mandal:8» Sukta:45» Mantra:26
| Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:47» Mantra:1
| Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:26
Reads times
SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (त्वा) तुमको (मूराः) मूढ़जन (मा+दभन्) न ठगने पावें तथा (उपहस्वानः) हँसी और दिल्लगी करनेवाले भी तुमको (मा+दभन्) न ठगने पावें।, जब वे (अविष्यवः) आपकी सहायता की आकाङ्क्षा करें और हे ईश (ब्रह्मद्विषः) प्रार्थना, ईश्वर, वेद और ब्राह्मण आदिकों से द्वेष रखनेवालों को आप (माकिम्+वनः) कदापि पसन्द न करें ॥२३॥
Connotation: - प्रायः देखा गया है कि संसार के द्वेषी नाना पाप और अपराध सदा करते रहते हैं, ईश्वरीय नियमों को तोड़ डालते हैं। वे न केवल ईश्वरभक्तों की निन्दा किया करते हैं, किन्तु अपने ऊपर आपत्ति आने पर ईश्वर की शरण में जाकर उन्हें भी ठगना चाहते हैं। उतनी देर के लिये परम भक्त बन जाते हैं, अतः इसमें प्रार्थना है कि ऐसे आदमी उन्नत न होने पावें ॥२३॥
Reads times
SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे इन्द्र ! त्वा=त्वाम्। मूराः=मूर्खाः। अविष्यवः=पालनकामा भूत्वा। मा दभन्=मा हिंसन्तु=मा वञ्चयन्तु। आ=पुनः। उप हस्वानः=हास्यपराः। अविष्यवो भूत्वा मा दभन्। हे इन्द्र ! त्वं ब्रह्मद्विषः=वेदद्वेषिणो=ब्राह्मणद्वेषिणश्च। माकीं वनः=मा भजेथाः ॥२३॥