Go To Mantra

म॒न्द्रं होता॑रमृ॒त्विजं॑ चि॒त्रभा॑नुं वि॒भाव॑सुम् । अ॒ग्निमी॑ळे॒ स उ॑ श्रवत् ॥

English Transliteration

mandraṁ hotāram ṛtvijaṁ citrabhānuṁ vibhāvasum | agnim īḻe sa u śravat ||

Pad Path

म॒न्द्रम् । होता॑रम् । ऋ॒त्विज॑म् । चि॒त्रऽभा॑नुम् । वि॒भाऽव॑सुम् । अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । सः । ऊँ॒ इति॑ । श्र॒व॒त् ॥ ८.४४.६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:44» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:37» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:6


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - जैसे ईश्वर हम लोगों का सखा, बन्धु, भ्राता, पिता-माता और जनयिता कहलाता है, वैसा ही वह दूत भी है। वह आत्मा को सन्देश देता है। अथवा दूत के समान हितकारी है अथवा दूत शब्द का अर्थ निखिल दुःखहारी भी होता है। अथ ऋगर्थः−मैं उपासक (दूतम्) दूत (अग्निम्) और सर्वाधार ईश को (पुरोदधे) आगे रखता हूँ अर्थात् मन में स्थापित करता हूँ और स्थापित करके (हव्यवाहम्) उस स्तोत्ररूप हव्यग्राहक परमात्मा की (उपब्रुवे) स्तुति करता हूँ, वह (इह) इस ध्यानयोग में (देवान्) सर्व इन्द्रियों को (आ) अच्छे प्रकार (सादयात्) प्रसन्न करे अर्थात् स्थिर करे ॥३॥
Connotation: - ध्यान-योगसमय मन में ईश्वर को स्थापित कर इन्द्रियों को वश में ला स्तुति प्रार्थना करे ॥३॥
Footnote: वेद में यह एक विचित्रता है कि जिस शब्द द्वारा ईश्वर की स्तुति प्रार्थना करते हैं, वह शब्द यदि भौतिक में भी घटता है, तो उसके पर्य्याय भी ईश्वर के लिये प्रयुक्त होते हैं, परन्तु ऐसे स्थलों में यौगिक अर्थ करके घटाना चाहिये ॥३॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - यथेश्वरोऽस्माकं सखा बन्धुः भ्राता पिता माता जनयिताऽस्ति, तथैव स दूतोऽप्यस्तीति बोध्यम्। अहमुपासकः। उपासनासमये। दूतं=निखिलदुःखहरं दूतमिव जीवात्मनः सन्देशहरम्। अग्निं=सर्वाधारमीशम्। पुरोदधे=मनसि पुरस्करोमि=स्थापयामि। स्थापयित्वा। हव्यवाहम्=स्तोत्ररूपस्य हव्यस्य वाहकम्। तम्। उपब्रुवे=मनसा समीपं गत्वा स्तौमि च। सः परमात्मा इह ध्यानयोगे। देवान्=सर्वाणि इन्द्रियाणि। आसादयात्=आसमन्तात् प्रसादयतु स्थिरीकरोत्वित्यर्थः ॥३॥