त्वाम॑ग्ने मनी॒षिण॒स्त्वां हि॑न्वन्ति॒ चित्ति॑भिः । त्वां व॑र्धन्तु नो॒ गिर॑: ॥
English Transliteration
tvām agne manīṣiṇas tvāṁ hinvanti cittibhiḥ | tvāṁ vardhantu no giraḥ ||
Pad Path
त्वाम् । अ॒ग्ने॒ । म॒नी॒षिणः॑ । त्वाम् । हि॒न्व॒न्ति॒ । चित्ति॑ऽभिः । त्वाम् । व॒र्ध॒न्तु॒ । नः॒ । गिरः॑ ॥ ८.४४.१९
Rigveda » Mandal:8» Sukta:44» Mantra:19
| Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:39» Mantra:4
| Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:19
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - (अयम्+अग्निः) यह सर्वत्र विद्यमान ईश (मूर्धा) सबका मूर्धा=शिर है और (दिवः+मूर्धा+ककुत्) द्युलोक का शिर और उससे भी ऊपर विद्यमान है और यह (पृथिव्याः+पतिः) पृथिवी का पति है। यह (अपाम्) जल के (रेतांसि) स्थावर जङ्गमरूप बीजों को (जिन्वति) पुष्ट और जिलाता है ॥१६॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! जो ईश्वर त्रिभुवन का अधिपति और स्थावरों और जङ्गमों का प्राणस्वरूप है, उसकी आज्ञाएँ मानो और उसी को जान पहिचान कर पूजो। स्तुति करो। अन्य की पूजा छोड़ो ॥१६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - अयमग्निः=सर्वत्र विद्यमान ईशः। मूर्धा=सर्वश्रेष्ठः। दिवः=सूर्य्याद्यधिष्ठितलोकस्य। मूर्धा शिरस्थानीयः। पुनः। ककुत्=तस्मादपि लोकादूर्ध्वोऽस्ति। अयमेव पृथिव्या पतिरस्ति। अयमेव अपां=जलानाम्। रेतांसि= स्थावरजङ्गमात्मकानि भूतानि। जिन्वति=प्रीणयति ॥१६॥