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ईशि॑षे॒ वार्य॑स्य॒ हि दा॒त्रस्या॑ग्ने॒ स्व॑र्पतिः । स्तो॒ता स्यां॒ तव॒ शर्म॑णि ॥

English Transliteration

īśiṣe vāryasya hi dātrasyāgne svarpatiḥ | stotā syāṁ tava śarmaṇi ||

Pad Path

ईशि॑षे । वार्य॑स्य । हि । दा॒त्रस्य॑ । अ॒ग्ने॒ । स्वः॑ऽपतिः । स्तो॒ता । स्या॒म् । तव॑ । शर्म॑णि ॥ ८.४४.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:44» Mantra:18 | Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:39» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - (यः+मर्तः) जो मरणशील उपासक (तन्वः) शरीर के (दमे) गृह में अर्थात् शरीररूप गृह में (अग्निम्+देवम्) सर्वाधार अग्निवाच्य महादेव की (सपर्य्यति) पूजा करता है, (तस्मै+इत्) उसी को परमात्मा प्रसन्न होकर (वसु) अभीष्ट धन (दीदयत्) देता है ॥१५॥
Connotation: - मनुष्य मिथ्या ज्ञान के कारण नाना तीर्थों में जाकर उसकी पूजा करता है और समझता है कि इन स्थानों में वह पूज्य इष्टदेव साक्षात् विराजमान है, जिसके दर्शन पूजन आदि से निखिल पाप छूटते हैं, यह मिथ्या भ्रम है। हे मनुष्यों ! यह सर्वत्र है। अपने हृदय को पवित्र कर उसी को शुद्ध मन्दिर मान वहाँ ही उसकी पूजा करो ॥१५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - यो मर्त्त उपासकः। तन्वः=शरीरस्य। दमे=गृहे। अग्निं देवम्। सपर्य्यति=पूजयति। तस्मै इत्=तस्मै एव। सोऽपि वसु=अभीष्टं धनम्। दीदयत्=ददाति ॥१५॥