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ऊ॒र्जो नपा॑त॒मा हु॑वे॒ऽग्निं पा॑व॒कशो॑चिषम् । अ॒स्मिन्य॒ज्ञे स्व॑ध्व॒रे ॥

English Transliteration

ūrjo napātam ā huve gnim pāvakaśociṣam | asmin yajñe svadhvare ||

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Pad Path

ऊ॒र्जः । नपा॑तम् । आ । हु॒वे॒ । अ॒ग्निम् । पा॒व॒कऽशो॑चिषम् । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । सु॒ऽअ॒ध्व॒रे ॥ ८.४४.१३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:44» Mantra:13 | Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:38» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:13


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हम उपासकगण परमात्मा से अभीष्ट की (ईमहे) याचना करते हैं, जो ईश (विप्रम्) सर्वज्ञानमय और अभीष्ट पूरक है (होतारम्) दाता (अद्रुहम्) शत्रु न होने के कारण द्रोहरहित (धूमकेतुम्) अज्ञानावृत जनों को ज्ञानदाता (विभावसुम्) सबमें प्रदीपक और (यज्ञानाम्+केतुम्) यज्ञों का ज्ञापक है। उससे हम प्रार्थना करें ॥१०॥
Connotation: - अनेक विशेष देने से तात्पर्य यह है कि उपासक के मन में ईश्वर के गुण बैठ जाएँ और वह उपासक भी सम्पूर्ण माननीय सद्गुणों से संयुक्त होवे ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - विप्रं=उपासकानामभीष्टपूरकं मेधाविनं वा होतारम्=दातारम्। अद्रुहम्=अद्रोग्धारम् अशत्रुत्वात्। धूमकेतुम्=धूमानां धूमावृतानामज्ञानां केतुं ज्ञानप्रदम्। विभावसुं=विभासयितारम्। पुनः। यज्ञानां केतुं=प्रज्ञापकमीशम्। ईमहे=अभीष्टं याचामहे ॥१०॥