कृ॒ष्णा रजां॑सि पत्सु॒तः प्र॒याणे॑ जा॒तवे॑दसः । अ॒ग्निर्यद्रोध॑ति॒ क्षमि॑ ॥
English Transliteration
kṛṣṇā rajāṁsi patsutaḥ prayāṇe jātavedasaḥ | agnir yad rodhati kṣami ||
Pad Path
कृ॒ष्णा । रजां॑सि । प॒त्सु॒तः । प्र॒ऽयाणे॑ । जा॒तऽवे॑दसः । अ॒ग्निः । यत् । रोध॑ति । क्षमि॑ ॥ ८.४३.६
Rigveda » Mandal:8» Sukta:43» Mantra:6
| Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:30» Mantra:1
| Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:6
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - (अग्ने) हे सर्वव्यापिन् महान् देव ! (तव) आपके ये (तिग्माः) तीक्ष्ण (त्विषः) दीप्ति प्रकाश अर्थात् सूर्य्यादिरूप प्रकाश (आरोकाः+इव) मानो सबके रुचिकर होते हुए (दद्भिः) विविध दानों के साथ (वनानि) कमनीय सुन्दर इन जगतों को (बप्सति) सदा उपकार कर रहे हैं। (घ+इत्+अह) इसमें सन्देह नहीं ॥३॥
Connotation: - ईश्वर की तीक्ष्ण दीप्ति ये ही सूर्य्यादिक हैं, जिनसे जगत् को कितने लाभ हो रहे हैं, उसको कौन वर्णन कर सकता है। ये ऋचाएँ भौतिक अग्नि के विषय में भी लगाई जा सकती हैं ॥३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे अग्ने=सर्वव्यापिन् देव ! तव। तिग्माः=तीक्ष्णाः। त्विषः=दीप्तयः सूर्य्यादिरूपाः। आरोकाः इव=आरोचमानाः इव=रुचिकरा इव। दद्भिः=विविधधनैः सह। वनानि=वननीयानि जगन्ति। बप्सति सदा उपकुर्वन्ति। घ+इद्+अह=अत्र न संशयः ॥३॥