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अ॒ग्निं वि॒श्वायु॑वेपसं॒ मर्यं॒ न वा॒जिनं॑ हि॒तम् । सप्तिं॒ न वा॑जयामसि ॥

English Transliteration

agniṁ viśvāyuvepasam maryaṁ na vājinaṁ hitam | saptiṁ na vājayāmasi ||

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Pad Path

अ॒ग्निम् । वि॒श्वायु॑ऽवेपसम् । मर्य॑म् । न । वा॒जिन॑म् । हि॒तम् । सप्ति॑म् । न । वा॒ज॒या॒म॒सि॒ ॥ ८.४३.२५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:43» Mantra:25 | Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:33» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:25


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (त्वम्+ईळिष्व) उस परमात्मा की स्तुति करो (यः+अग्निः) जो अग्निवाच्य ईश्वर (घृतैः) घृत के समान विविध स्तोत्रों से (आहुतः) पूजित होकर उपासकों के हृदय में (विभ्राजते) प्रकाशित होता है और जो (नः) हम मनुष्यों के (इमम्+हवम्) इस आह्वान, स्तुति और निवेदन को (शृणवत्) सुनता है ॥२२॥
Connotation: - जिस कारण परमात्मा चेतन देव है, अतः वह हमारी प्रार्थना स्तुति को सुनता है। अन्य सूर्य्यादि देव जड़ हैं, अतः वे हमारी प्रार्थना को नहीं सुन सकते। इस कारण केवल ईश्वर की ही स्तुति कर्त्तव्य है ॥२२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! तमेवाग्निवाच्यमीशम्। ईळिष्व=स्तुहि। योऽग्निः। घृतैः=घृतैरिव विविधस्तवैः। आहुतः=पूजितः सन् उपासकस्य हृदि। विभ्राजते=प्रकाशते। यश्च। नोऽस्माकम्। इमं हवम्=आह्वानम्। शृणवत्=शृणोति च ॥२२॥