तुभ्यं॒ ता अ॑ङ्गिरस्तम॒ विश्वा॑: सुक्षि॒तय॒: पृथ॑क् । अग्ने॒ कामा॑य येमिरे ॥
English Transliteration
tubhyaṁ tā aṅgirastama viśvāḥ sukṣitayaḥ pṛthak | agne kāmāya yemire ||
Pad Path
तुभ्य॑म् । ताः । अ॒ङ्गि॒रः॒ऽत॒म॒ । विश्वाः॑ । सु॒ऽक्षि॒तयः॑ । पृथ॑क् । अग्ने॑ । कामा॑य । ये॒मि॒रे॒ ॥ ८.४३.१८
Rigveda » Mandal:8» Sukta:43» Mantra:18
| Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:32» Mantra:3
| Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:18
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - (अग्ने) हे सर्वगतिप्रद ईश ! (सः+त्वम्) वह तू (विप्राय) मेधावी जनों को तथा (दाशुषे) ज्ञान-विज्ञानदाता जनों को (सहस्रिणम्) अनन्त (रयिम्) धन को (देहि) दे। पुनः (वीरवतीम्) वीर पुत्र-पौत्र आदि सहित (इषम्) अन्न को दे ॥१५॥
Connotation: - भगवान् उसी के ऊपर अपने आशीर्वाद की वर्षा करता है, जो स्वयं परिश्रमी हो और जो धन या ज्ञान प्राप्त कर दूसरों का उपकार करता हो। अतः विप्र और दाश्वान् पद आया है, जो परिश्रम करके प्राकृत जगत् से अथवा विद्वानों से शिक्षा लाभ करता है, वही विप्र मेधावी होता है। जिसने कुछ दिया है या देता है, उसी को दाश्वान् कहते हैं। वीरवती। जिस मनुष्य में वीरता नहीं है, जगत् में उसका आना और न आना बराबर है। अवीर पुरुष अपनी जीविका भी उचितरूप से नहीं कर सकता ॥१५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे अग्ने ! सः त्वम्। विप्राय=मेधाविने जनाय। पुनः। दाशुषे=विज्ञानादिदानशीलाय च। सहस्रिणं= सहस्रसंख्याकमपरिमितम्। रयिं=जनम्। वीरवतीम्= वीरपुत्रपौत्रादिसमेताम्। इषमन्नञ्च। देहि ॥१५॥