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यद्वा॒ रुमे॒ रुश॑मे॒ श्याव॑के॒ कृप॒ इन्द्र॑ मा॒दय॑से॒ सचा॑ । कण्वा॑सस्त्वा॒ ब्रह्म॑भि॒: स्तोम॑वाहस॒ इन्द्रा य॑च्छ॒न्त्या ग॑हि ॥

English Transliteration

yad vā rume ruśame śyāvake kṛpa indra mādayase sacā | kaṇvāsas tvā brahmabhiḥ stomavāhasa indrā yacchanty ā gahi ||

Pad Path

यत् । वा॒ । रुमे॑ । रुश॑मे । श्याव॑के । कृपे॑ । इन्द्र॑ । मा॒दय॑से । सचा॑ । कण्वा॑सः । त्वा॒ । ब्रह्म॑ऽभिः । स्तोम॑ऽवाहसः । इन्द्र॑ । आ । य॒च्छ॒न्ति॒ । आ । ग॒हि॒ ॥ ८.४.२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:4» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:30» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:2


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SHIV SHANKAR SHARMA

वह किसके ऊपर दया करता है, यह इस ऋचा से दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (यद्+वा) यद्यपि (रुमे) रोगी जनों को मातृवत् माननेवाले के (सचा) साथ (रुशमे) औषधि से रोगों को शान्त करनेवाले वैद्य के साथ (श्यावके) परानुग्रहार्थ भ्रमण करनेवाले मनुष्य के साथ तथा (कृपे) कृपा करनेवाले के साथ तू सदा (मादयसे) आनन्दित रहता है और उनको आनन्दित रखता है। तथापि हे इन्द्र ! (स्तोमवाहसः) मनुष्यों में तेरे गुणों के पहुँचानेवाले (कण्वासः) ग्रन्थरचयिता जन (ब्रह्मभिः) निज-२ उत्कृष्ट स्तोत्रों के द्वारा (त्वा) तुझको (आ+यच्छन्ति) अपनी ओर कर लेते हैं। हे परमात्मन् ! हम उपासक भी तेरी स्तुति करते हैं। (आगहि) अतः हमारे ऊपर कृपा करने के लिये आ ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो उसकी आज्ञा अच्छे प्रकार जानकर जगत् में परार्थ प्रवृत्त होते हैं, वे ही ईश के दयापात्र हैं। वे कौन हैं, इस अपेक्षा में कतिपय उदाहरण दिखलाते हैं। जो कोई रोगार्तों के उद्धारक हैं, जो जनों के दुःख की निवृत्ति के लिये सदा यत्न करते हैं, सर्वभूतों पर अपने समान कृपा करते हैं, ऐसे मनुष्यों के हृदय में वह ईश निवास करता है। इनके अतिरिक्त संसार के कल्याण के लिये जो उपदेश दिया करते हैं, उपदेशमय ग्रन्थों को रचकर प्रचार करते हैं और ईश्वरीय आज्ञाओं को लोगों में समझाते हैं, इस प्रकार के जो जन हैं, वे भी ईश्वर की दया पाते हैं। तुम भी ऐसे शुभकर्म करके उसके अनुग्राह्य बनो ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे कर्मयोगिन् ! (यद्वा) यद्यपि (रुमे) केवल शब्दमात्र करनेवाले तथा (रुशमे) तेजस्वी (श्यावके) तमोगुणवाले तथा (कृपे) समर्थ पुरुषों में (सचा) साथ ही (मादयसे) हर्ष उत्पन्न करते हैं, तथापि (स्तोमवाहसः) आपके भाग को लिये हुए (कण्वासः) विद्वान् लोग (ब्रह्मभिः) स्तुति द्वारा (त्वा) आपको (आयच्छन्ति) बुलाते हैं, (इन्द्र) हे इन्द्र ! (आगहि) आइये ॥२॥
Connotation: - हे ऐश्वर्य्यसम्पन्न कर्मयोगिन् ! भीरु, तेजस्वी, तमोगुणी तथा सम्पत्तिशाली सब प्रकार के पुरुष आपको बुलाकर सत्कार करते और आप सबको हर्ष उत्पन्न करते हैं, सो हे भगवन् ! आपके सत्कारार्ह पदार्थ लिये हुए विद्वान् लोग स्तुतियों द्वारा आपको बुला रहे हैं। आप कृपा करके शीघ्र आइये ॥२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

स कस्मिन् दयत इत्यनया दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! यद्वा=यद्यपि। रुमे=रुग्णं पुरुषं यो मन्यते=मातृवन् मानयति स रुमो रोगिसेवकस्तस्मिन्। रुशमे=रुग्णं शमयतीति रुशमस्तस्मिन्। रोगिचिकित्सके वैद्ये। श्यावके=परानुग्रहायाभिगन्तरि। तथा। कृपे=कृपालौ जने। सचा=सार्धम्। रुमादिषु सर्वत्र तृतीयार्थे सप्तमी। रुमादिभिः। सार्धमित्यर्थः। त्वं मादयसे=आनन्दसि= तानानन्दयसि च। तथापि। स्तोमवाहसः=मनुष्येषु तव गुणप्रापकाः। कण्वासः=कण्वा ग्रन्थरचयितारो मेधाविनः। ब्रह्मभिः=स्वकीयैरुत्कृष्टैः स्तोत्रैः करणैः। त्वा+आयच्छन्ति=त्वां स्वाभिमुखीकुर्वन्ति। वयमपि तादृशाः। अतोऽस्मान्। आगहि=आगच्छ ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र (यद्वा) यद्यपि (रुमे) केवलं शब्दस्य कर्तरि (रुशमे) दीप्तिमति (श्यावके) तमःप्रकृतिके (कृपे) समर्थे च (सचा) सह (मादयसे) सर्वान् हर्षयसि तथापीदानीम् (स्तोमवाहसः) तव भागं वाहयन्तः (कण्वासः) विद्वांसः (ब्रह्मभिः) स्तुतिभिः (त्वा) त्वां (आयच्छन्ति) आगमयन्ति (इन्द्र) हे इन्द्र ! (आगहि) आयाहि ॥२॥